क्या है आत्मा की ज्योति: महर्षि याज्ञवल्क्य
आत्मा के उज्जवल होने के बारे में ज्ञान देते हुए महर्षि याज्ञवल्क्य बताते हैं कि जो आत्मा के बारे में जान गया, वह महाज्ञानी हो गया।
चार वेद के ज्ञाता
महर्षि याज्ञवल्क्य को महान अध्यात्मवेत्ता, योगी, ज्ञानी, धर्मात्मा तथा श्रीराम कथा का प्रमुख वक्ता माना जाता है। मान्यता है कि भगवान सूर्य की प्रत्यक्ष कृपा इन्हें प्राप्त थी। पुराणों में इन्हें ब्रह्मा का अवतार बताया गया है। याज्ञवल्क्य का समय लगभग 1200 ईसा पूर्व माना जाता है। इनके विचार मुख्यत: बृहदारण्यक उपनिषद के याज्ञवल्क्यी कांड में उपलब्ध हैं। वे ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद भी पढ़ाते थे। इसलिए शंकराचार्य ने लिखा है कि वे चारों वेदों के ज्ञाता थे।
महर्षि याज्ञवल्क्य की एक कथा
कथा है कि एक बार महर्षि याज्ञवल्क्य के पास राजा जनक बैठे थे। वे बोले, 'महर्षि मेरी शंका का निवारण करें। हम जो देखते हैं, वह किसकी ज्योति से देखते हैं?' महर्षि ने कहा, 'सूर्य की ज्योति के कारण देखते हैं।'
जनक ने पुन: प्रश्न पूछा, 'जब सूर्य अस्त हो जाता है, तब हम किसके प्रकाश से देखते हैं?' महर्षि ने बताया, 'चंद्रमा के प्रकाश से।'
जनक का अगला प्रश्न था, 'सूर्य चंद्रमा, तारे-नक्षत्र के नहीं रहने पर?' महर्षि बोले, 'तब हम शब्दों की ज्योति से देखते हैं। यदि अंधेरे में खड़ा व्यक्ति हमें इधर आओ कहता है, तो हम शब्दों के प्रकाश से उस व्यक्ति के पास पहुंच जाते हैं।'
जनक ने पूछा, 'जब शब्द भी न हों, तब हम किस ज्योति से देखते हैं?' महर्षि बोले, 'तब हम आत्मा की ज्योति से देखते हैं। आत्मा की ज्योति से ही सारे कार्य होते हैं।'
'और यह आत्मा क्या है'-राजा जनक ने प्रश्न किया। महर्षि ने उत्तर दिया, 'योअयं विज्ञानमय: प्राणेषु हृद्यंतज्र्योति: पुरुष:।'-अर्थात यह जो विशेष ज्ञान से भरपूर है, जीवन और ज्योति से भरपूर है, जो हृदय में जीवन है, अंत:करण में ज्योति है और सारे शरीर में विद्यमान है, वही आत्मा है।
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