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उतार-चढ़ाव के बावजूद मन को स्थिर रखना ही है जीवन का सूत्र

लोभ और मोह की असीमित शक्ति का हाल है कि हम पूरा जीवन इसमें लगा देते हैं कि हमारे पास इतनी अथाह संपत्ति हो जिसकी बराबरी धरती का कोई भी व्यक्ति न कर सके और हमारी संतान भी ऐसी हो जिसकी सुंदरता और बुद्धिमत्ता का कोई मुकाबला न हो सके।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Thu, 14 Jul 2022 12:33 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jul 2022 12:33 PM (IST)
उतार-चढ़ाव के बावजूद मन को स्थिर रखना ही है जीवन का सूत्र
परम आनंद को प्राप्त ही सब कुछ नहीं

नई दिल्ली, डॉ.गदाधर त्रिपाठी। काम, क्रोध, लोभ और मोह की स्वाभाविक वृत्तियों से घिरा हुआ मनुष्य जब अपनी असत् दृष्टि से इनमें आनंद का अनुभव करने लगता है, तो उसे यह संसार खुशनुमा लगने लगता है। काम अर्थात इच्छा। जब भी किसी व्यक्ति के मन में उठी इच्छा की पूर्ति होती है, तो वह परम आनंद को प्राप्त होता है, पर वह यह भूल जाता है कि उसकी यह इच्छापूर्ति उसी तरह से उसके मन में एक और इच्छा जागृत करके उसके चित्त को अव्यवस्थित कर देगी, जिस तरह से जलती हुई अग्नि पूरी मात्र में घी पाने पर भी बुझती नहीं है, अपितु और वेग से जलने लगती है।

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इसी भांति से यदि अन्य किसी व्यक्ति के साथ विचार भिन्नता होती है तो वे दोनों ही पक्ष एक-दूसरे की हानि करने के लिए तत्पर हो जाते हैं और अपने चित्त की सहज शांति खो बैठते हैं। इस स्थिति में जिसकी हानि होती है वह तो दुखी होता ही है, जो लाभ में रहता है वह भी हारे हुए पक्ष की ओर से आने वाली संभावित प्रतिक्रिया से हर दम चिंता में डूबा रहता है। और इस तरह से क्रोध भी व्यक्तियों को पीड़ित करने का कारण ही बनता है।

वहीं लोभ और मोह की असीमित शक्ति का तो यह हाल है कि हम अपना पूरा का पूरा जीवन इसमें लगा देते हैं कि हमारे पास इतनी अथाह संपत्ति हो, जिसकी बराबरी धरती का कोई भी दूसरा व्यक्ति कभी न कर सके और हमारी अपनी संतान भी ऐसी हो, जिसकी सुंदरता और बुद्धिमत्ता का कोई मुकाबला न हो सके। रावण से लेकर कंस आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं, जो अपने जीवन में अपनी ऐसी ही मानसिक विकृतियों से कभी भी पार नहीं पा सके। हमें स्पष्ट रूप से यह जान लेना चाहिए कि ऊपर से ललित और आकर्षक दिखने वाला यह जगत अंत में हमारे लिए सुख का नहीं, अपितु दुख और पीड़ा देने का ही कारण बनता है। इसीलिए विज्ञजन कहते हैं कि यहां हमें पद्मपत्र की तरह निरपेक्ष भाव से रहकर अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसी से सुख की स्थायी अनुभूति संभव है।


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