Kalashtami 2023: प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री से जानें, कब और कैसे हुआ काल भैरव का अवतार ?
भगवान शंकर की प्रसिद्ध पुरियों में ये नगर रक्षक के रूप में कोतवाल भैरवनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। वहां रहते हुए सदैव दुष्टात्माओं से नगर तथा नगरवासियों की रक्षा करते हैं। ये देवताओं तथा मानवों पर शासन करते हैं। वामनपुराण में भैरव के रूप में भगवान शिव का प्रादुर्भाव नामक अध्याय है जहां विस्तार से भैरव जी की जन्मकथा वर्णित है।

प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री, ज्योतिष विभाग अध्यक्ष, काशी हिंदू विश्वविद्यालय: सनातन संस्कृति में विश्व का मूलाधार शिवतत्व है। परब्रह्म परमात्मा ही शिव हैं। इन्हें ही सदाशिव कहते हैं। भगवान शिव रक्षक एवं संहारक रूपों में सगुण रूप से भक्तों के दर्शनार्थ प्रकट होते हैं। सगुण रूपों के ध्यान, स्मरण, नामजप, लीला चिंतन से भक्तों का हृदय निर्मल हो जाता है।
संसार में धर्म की स्थापना, अधर्म का विनाश, आततायी असुरों के दमन के लिए तथा प्रेमी भक्तों की इच्छा पूर्ण करने के लिए भगवान सदाशिव विविध रूपों में अवतीर्ण होते हैं। भगवान शंकर अनादि अनंत तथा बुद्धि से परे होते हुए भी जगत की सृष्टि, पालन एवं संहार हेतु विविध कल्पों में कभी एकादश रुद्र रूप में तो कभी भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, कुष्मांड, बेताल, भैरव, विनायक, यातुधान, योगिनी आदि रूपों में प्रकट होकर सृष्टि को संतुलित करते रहते हैं।
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भैरव का अवतार भी भगवान शिव स्वयं धारण करते हैं। यह अवतार कब और कैसे हुआ, इस विषय में शिवपुराण की शतरुद संहिता 8/2 में वर्णन आया है कि भगवान शिव ने अंधकासुर के वध हेतु मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी (इस वर्ष पांच दिसंबर) को मध्याह्न में अवतार धारण किया था, अतः इस तिथि को भैरवाष्टमी या कालाष्टमी भी कहते हैं।
क्रोध के आवेग में अवतरित होने के कारण उनका स्वरूप भयंकर था अतएव वे कालभैरव कहे गए। हाथ में दंड धारण करके अवतरित हुए, अतः दंडपाणि कहलाए। भैरव शब्द का अर्थ होता है दारुण, भीषण, घोर, भयानक आदि। भै का अर्थ डर तथा रव का अर्थ शब्द है। भयंकर शब्द करते हुए प्रकट हुए अतएव भैरव हुए। जैसा कि इनकी स्तुति में कहा गया :
हुंकारं भैरवं भीमं प्रणतार्तिं हरं प्रभुम्।
सर्वाभीष्टप्रदं देवं प्रपद्ये कालभैरवम्।।
बालरूप में इन्हें बटुकभैरव तथा जब आनंद की मुद्रा में होते हैं, तब आनंद भैरव के नाम से जाना जाता है। काल संवत्सर का आत्मा, चराचर का नियंता और अनादि व अनंत है। काल भैरव की शक्ति का नाम भैरवी है। यह दस महाविद्याओं में परिगणित हैं। भैरव जी का वाहन भी श्वान (कुत्ता) है। कृषक वर्ग इन्हें अपना प्रमुख देवता मानता है। योगियों में नाथ पंथ के अनुयायी इन्हें अपना आराध्य मानते हैं।
भगवान शंकर की प्रसिद्ध पुरियों में ये नगर रक्षक के रूप में कोतवाल भैरवनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। वहां रहते हुए सदैव दुष्टात्माओं से नगर तथा नगरवासियों की रक्षा करते हैं। ये देवताओं तथा मानवों पर शासन करते हैं। वामनपुराण में भैरव के रूप में भगवान शिव का प्रादुर्भाव नामक अध्याय है, जहां विस्तार से भैरव जी की जन्मकथा वर्णित है।
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ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृति खंड के दुर्गोपाख्यान के 61वें अध्याय में भैरव जी के आठ स्वरूपों की चर्चा हुई है, यथा : महाभैरव, संहारभैरव, असितांगभैरव, रुरुभैरव, कालभैरव, क्रोधभैरव, कपालभैरव तथा रुद्रभैरव। कालिकापुराण के 44वें अध्याय में भैरव को शिव के अंशों में माना गया है।
नन्दी भृङ्गी महाकालो वेतालो भैरवस्तथा।
अङ्गं भूत्वा महेशस्य वीतभीतास्तपोधनाः।।
एक स्थल पर वर्णन आया है कि शिवगण भृङ्गी जी पार्वती जी के शापवश वानरमुख होकर भैरव के रूप में प्रकट हुए। स्कंदपुराण के काशीखंड में कहा गया है कि :
मार्गशीर्षासिताष्टम्यां कालभैरवसन्निधौ।
उपोष्य जागरं कुर्वन् सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
अर्थात मार्गशीर्ष (अगहन मास) के कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालभैरव जी के सान्निध्य में उपवास कर जागरण करने से सभी पापों से मुक्ति हो जाती है। त्रिस्थली सेतु नामक ग्रंथ में कहा गया है कि कालभैरव की पूजा जन्मोत्पत्ति के दिन करने से वर्ष पर्यंत व्यक्ति सभी प्रकार के विघ्नों से तथा अपमृत्यु से रक्षित हो जाता है तथा नरक से अपने पितरों का भी उद्धार कर लेता है।

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