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    जन्माष्टमी: योगेश्वर हैं श्रीकृष्ण

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    Updated: Wed, 28 Aug 2013 12:26 PM (IST)

    जब हम खुद को अर्जुन की तरह संशयों में घिरा पाते हैं, तब हमें योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी ही उससे निकाल पाती है। उन्होंने जन्म ही मनुष्य को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने के लिए लिया था। कृष्ण का जन्म पृथ्वी पर हो रहे अनाचार-अत्याचार को खत्म करने के लिए हुआ था। उन्होंने युद्ध के

    जब हम खुद को अर्जुन की तरह संशयों में घिरा पाते हैं, तब हमें योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी ही उससे निकाल पाती है। उन्होंने जन्म ही मनुष्य को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने के लिए लिया था।

    कृष्ण का जन्म पृथ्वी पर हो रहे अनाचार-अत्याचार को खत्म करने के लिए हुआ था। उन्होंने युद्ध के मैदान में अर्जुन को जो उपदेश दिए, वे आज भी एक संशयग्रस्त मानव के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। मनुष्य को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का कार्य उनका योगेश्वर रूप करता है। स्वयं भगवान ने अपने श्रीमुख से योगशास्त्र की प्रशंसा की है। वेद, पुराण तथा दर्शन के ग्रंथों में योग-विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। योगशास्त्र एक ऐसा साधन है, जो मनुष्य को दिव्य शक्तियों से संपन्न कर सकता है। योग-साधना के कारण ही ऋषि-मुनियों को अपार शक्ति प्राप्त हुई थी। लीला-पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने बचपन से लेकर गोलोक गमन तक ऐसी अद्भुत लीलाएं कीं कि सबने एक स्वर से उन्हें योगेश्वर कहा। मान्यता है कि देवता भी योगेश्वर श्रीकृष्ण की लीलाओं का संपूर्ण रहस्य नहीं जान पाए। संसार को योग का मर्म समझाने के उद्देश्य से ही श्रीकृष्ण ने पांडवों और कौरवों के युद्ध से पूर्व संशयग्रस्त अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता रूपी योगामृत देकर संपूर्ण विश्व के समक्ष योगशास्त्र का सार रख दिया। गीता आज भी हर इंसान की पथ-प्रदर्शक बनी हुई है। गीता को योगेश्वर की वाणी कहा जाता है।

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    योगेश्वर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली श्रीमद्भगवद्गीता में योगशास्त्र के मंथन से उत्पन्न योगामृत 18 अध्यायों में विभक्त हैं। प्रत्येक अध्याय का नाम योग पर आधारित है। जैसे, प्रथम अध्याय का नाम अर्जुन-विषाद योग है। इसी प्रकार क्रमश: सांख्य योग, कर्मयोग, ज्ञानकर्म-संन्यास योग, कर्म संन्यास योग, आत्मसंयम योग, ज्ञान-विज्ञान योग, अक्षर बšायोग, राजविद्या राजगुच् योग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शन योग, भक्तियोग, क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग योग, गुणत्रयविभाग योग, पुरुषोत्तम योग, देवासुर संपद्विभाग योग, श्रद्धात्रयविभाग योग तथा मोक्षसंन्यास योग अध्यायों के नाम हैं। गीता के 18 अध्यायों में जितने प्रकार के योग बताए गए हैं, उनमें से कोई भी योग अपनाकर मनुष्य आत्मकल्याण कर सकता है।

    योगी जिस ईश्वर का ध्यान करते हैं, जिन्हें पाने के लिए कठोर तप करते हैं, वे योगेश्वर श्रीकृष्ण ही हैं। ऋषि-मुनि और योगी ही नहीं, मान्यता है कि त्रिदेव अर्थात ब्रšा, विष्णु और महेश भी उनका साक्षात्कार पाने के लिए उत्सुक रहते हैं। तभी तो श्रीमद्भागवत महापुराण कहता है - कृष्णस्तु भगवान स्वयम्। अर्थात श्रीकृष्ण साक्षात भगवान हैं। यानी योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान का अवतार नहीं, वरन स्वयं भगवान ही हैं। संस्कृत के सुप्रसिद्ध कवि जयदेव ने अपने काव्य गीतगोविंद में दशावतारों का वर्णन करते हुए उन सबको भगवान श्रीकृष्ण का ही अवतार माना है। सही मायने में योगेश्वर और भगवान एक-दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का अंतिम निष्कर्ष यही है :

    यत्र योगेश्वर: कृष्णों यत्र पार्थो धनुर्धर:।

    तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्र्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।

    अर्थात जहां योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहां गांडीव धनुर्धारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और धर्म है। श्लोक में यह बात संजय ने धृतराष्ट्र को गीता के अंत में कही है। यह सत्य भी है, क्योंकि आज भी वैसी संशयात्मक परिस्थितियां हर मनुष्य के जीवन में आती हैं, जब वह कोई निर्णय नहीं ले पाता है। उसके अज्ञान का निवारण करके उसे ज्ञान का प्रकाश देने का काम योगेश्वर की वाणी करती है।

    हमें अर्जुन के समान योगेश्वर कृष्ण के दिखाए पथ पर चलने का संकल्प लेना होगा, तभी योगेश्वर की जयंती मनाना सार्थक सिद्ध हो सकेगा। योगेश्वर श्रीकृष्ण के उपदेश आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने द्वापरयुग में थे।

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