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अगर कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी

जब कर्तव्य और अधिकार एक सिक्के के दो पहलू हैं तो हम हमेशा अधिकार पर ही क्यों रुक जाते हैं? कर्तव्य हमें अपनी नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं तो अधिकार हमारे जागरूक होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। यदि हम जागरूक हैं तो फिर जिम्मेदार क्यों नहीं?

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Sat, 06 Aug 2022 02:29 PM (IST)Updated: Sat, 06 Aug 2022 02:29 PM (IST)
अगर कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी
अधिकार से पहले व्यक्ति को पहले अपना कर्तव्य करना चाहिए

नई दिल्ली, देवेंद्र सिंह सिसौदिया। सामान्य तौर पर हम अधिकार एवं कर्तव्य की बात करते हैं। जबकि वास्तव में होना चाहिए कर्तव्य और अधिकार। व्यक्ति को पहले अपना कर्तव्य करना चाहिए। फिर अपने अधिकारों की बात करनी चाहिए। जब हम अधिकारों की बात करते हैं तो यह भूल जाते हैं कि हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। यह विडंबना है कि संविधान में भी कर्तव्यों को बाद में जोड़ा गया।

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जब कर्तव्य और अधिकार एक सिक्के के दो पहलू हैं, तो हम हमेशा अधिकार पर ही क्यों रुक जाते हैं? कर्तव्य हमें अपनी नैतिक जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं तो अधिकार हमारे जागरूक होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। यदि हम जागरूक हैं तो फिर जिम्मेदार क्यों नहीं? अगर परिवार, समाज और देश में समृद्धि और शांति लाना चाहते हैं तो हर नागरिक को पहले अपने कर्तव्य पर ध्यान देना होगा। केवल अधिकारों की बात कर उसकी आड़ में हम अपने कर्तव्यों को अनदेखा न करें। हम ईमानदारी से कर्तव्य करते रहेंगे तो अधिकार स्वत: ही प्राप्त हो जाएंगे, क्योंकि वह कर्तव्यों में ही निहित है।

कर्ण की कर्तव्य के प्रति निष्ठा सर्वविदित है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन ही नहीं, बल्कि मनुष्य मात्र को यह उपदेश दिया है कि ‘कर्म करो और फल की इच्छा मत करो।’ जब इच्छित फल की हमें प्राप्ति नहीं होती है तो हमें दुख होता है। अत: सुखी रहना है तो सिर्फ कर्म करें और वह भी निष्काम भाव से। कर्तव्यों में कर्म है और कर्म करना ही मनुष्य की पहचान है। यही कर्म पुण्य के माध्यम से हमें स्वर्ग के द्वार तक पहुंचाते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘अधिकार का अच्छा स्नेत है कर्तव्य। अगर हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर कर्तव्यों की उपेक्षा करके हम अधिकारों के पीछे पड़े तो हमारी खोज मृगतृष्णा की तरह व्यर्थ होगी। जितना हम अधिकारों का पीछा करेंगे, उतना ही वे हमसे दूर होंगे।’


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