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    Hindu Nav Varsh 2025: प्रकृति और जीवन में नवीनता के प्रस्फुटन का उपयुक्त समय है हिंदू नववर्ष

    Updated: Mon, 31 Mar 2025 10:09 AM (IST)

    चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष का शुभारंभ हो चुका है। प्रकृति और जीवन में नवीनता के प्रस्फुटन का यही उपयुक्त समय है। सनातनी हिंदू धर्म में इस समय को अत्यंत शुभ और सृजनशीलता से परिपूर्ण माना जाता है। इसका खगोलीय और प्राकृतिक महत्व है। चैत्र मास के साथ ही वसंत ऋतु का आगमन होता है जो एक नए जीवन का संकेत है।

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    Hindu Nav Varsh 2025 क्यों खास है हिंदू नवर्वष का दिन?

    आध्यात्मिक गुरु, आचार्य नारायण दास। भारतीय पंचांग के अनुसार, वैदिक संस्कृति सनातनी हिंदू वर्ष का आरंभ चैत्रमास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है, जो नवरात्र का प्रथम दिन होता है। भारतीय जनमानस इसे हिंदू नववर्ष कहता है। यह दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है और इस दिन से ही चैत्र नवरात्र का भी श्रीगणेश होता है।

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    इसलिए खास है हिंदू नववर्ष

    इस समय प्रकृति में परिवर्तन होते हैं, वृक्षों में नई कोंपलें फूटती हैं, मौसम सुहावना हो जाता है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। ऐसे में नववर्ष का शुभारंभ प्रासंगिक और प्रकृति अनुकूल समय होता है। वसंत ऋतु में प्रकृति में परिवर्तन होता है, एक नई उमंग के अनुसार नए स्वरूप का आभामंडल सर्वत्र परिव्याप्त होता है। इस परिवर्तन की दृष्टि से हमारे सनातन और पुरातन ऋषि-मनीषियों ने इसे हिंदू नववर्ष की संज्ञा दी, क्योंकि यह वसंत ऋतु में एक प्राकृतिक नवीनता शुभारंभ होता है।

    देवी दुर्गा जी की नौ दिवसीय आराधना

    चैत्र नवरात्रि जगज्जननी भगवती देवी दुर्गा जी की नौ दिवसीय आराधना के दृष्टि से सृष्टि के ऊषाकाल से शक्ति और शांति प्राप्ति के लिए माना गया है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय अनेक सांस्‍कृतिक परम्पराएं हैं, जैसे कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगादि और महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाते हैं। चैत्र नवरात्र आध्यात्मिक चिंतन, सांस्कृतिक समुत्सव एवं हर्षोल्लास का महापर्व है, जो कि आसुरी वृत्तियों के दमन और सर्वत्र शांति को सुप्रतिष्ठिता करता है। मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा के सुमन अर्पित करता है।

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    इस तिथि की प्रमुख घटनाएं

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जगन्नियन्ता श्रीब्रह्मा जी ने भगवान श्रीमन्नारायण के अनुसार सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही की थी। इसी दिन से काल की गणना श्रीगणेश हुआ था। इसलिए इसे नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।महाराज श्रीविक्रमादित्य ने मालवा में एक बड़े युद्ध में विजय प्राप्त की और चैत्रमाह की प्रतिपदा को नवसंवत्सर के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

    धार्मिक ग्रंथों में समुल्लेख है कि भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी को हुआ था तथा लंका विजय के पश्चात् उनका राज्याभिषेक चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को हुआ था। महाभारत में वर्णित है चैत्र प्रतिपदा शुक्लपक्ष को ही महाराज युधिष्ठिर का राजतिलक भी हुआ था। भगवती मां दुर्गादेवी ने दुष्ट-राक्षसों का संहार इन्हीं नौ दिनों के मध्य किया था, जिससे नवरात्र का शुभारंभ हुआ। चैत्र नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों को आत्मबल, शक्ति और शुद्धता प्राप्त होती है। यह समय आध्यात्मिक साधना और आत्मावलोकन के लिए भी सर्वोत्तम होता है।

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