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    आइए जानें, मकर संक्रांति महापर्व के बारे में इतनी महत्‍वपूर्ण बातें

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 15 Jan 2016 10:30 AM (IST)

    मकर संक्रांत‌ि का त्योहार आमतौर पर हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेक‌िन बीते कुछ सालों में मकर संक्रांत‌ि को लेकर पेंच फंसता रहा है और इस साल भी यही स्‍थ‌ित‌ि बनी हुई है। सावल सामने यह आ रहा है क‌ि मकर संक्रांत‌ि का त्योहार और दान-पुण्‍य का

    मकर संक्रांत‌ि का त्योहार आमतौर पर हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है लेक‌िन बीते कुछ सालों में मकर संक्रांत‌ि को लेकर पेंच फंसता रहा है और इस साल भी यही स्थ‌ित‌ि बनी हुई है। सावल सामने यह आ रहा है क‌ि मकर संक्रांत‌ि का त्योहार और दान-पुण्य का मुहूर्त 14 को है या 15 जनवरी को। दरअसर यह सवाल इसल‌िए उठा रहा है क्योंक‌ि मकर संक्रांत‌ि का सीधा संबंध सूर्य से है। दरअसल मकर संक्रांत‌ि का त्योहार सूर्य के मकर राश‌ि में आने पर होता है। इस साल सूर्य का प्रवेश 14 जनवरी को मकर राश‌ि में होने जा रहा है इस आधार पर यह त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाना चाह‌िए। लेक‌िन कुछ शास्त्रीय मत और वैद‌िक न‌ियम ऐसे हैं ज‌िनके अनुसार मकर संक्रांत‌ि का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाना चाह‌िए।

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    सनातन धर्म में सूर्य जिस समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश या संक्रमण करते हैं, उसे मकर संक्रांति कहते हैं। प्राय: मकर संक्रांति 14 जनवरी को होती रही है, लेकिन इस बार भगवान भास्कर का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को प्रात: 7.34 मिनट पर हो रहा है। अत: इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी। इसका पुण्य काल सूर्यास्त तक रहेगा। वास्तव में 'मकर संक्रांति' प्रकृति में क्रांति का प्रारंभ है। इस दिन से न सिर्फ प्राकृतिक वातावरण में दिव्य परिवर्तन की शुरुआत होती है वरन जनजीवन में भी वास्तविक उल्लास का संचार होता है। इस अवधि में प्रात:काल पुण्य कामना से प्रयाग संगम, गंगा या अन्य नदियों में स्नान का विधान है। शास्त्रों में इसका अमोघ फल बताया गया है।
    मकर संक्रांति स्नान के साथ ही दान का भी पर्व है। मौसमी विधान के अनुसार इस तिथि विशेष पर गरम तासीर वाली वस्तुओं के दान और खानपान का भी प्रावधान है। दान में काला तिल, खिचड़ी, साग सब्जी, गर्म वस्त्र का विशेष मान है। मान्यता है कि दान से धन धान्य में वृद्धि और मनोकामना पूर्ति होती है। इसके सेवन से शरीर भी निरोग रहता है। इस सूर्योपासना पर्व पर स्नानोपरांत अघ्र्य देकर विधिवत पूजन, भजन, वाचन अर्थात आदित्य हृदयस्रोतम का पाठ, गायत्री मंत्र का जप, सूर्य सहस्त्रनाम इत्यादि का वाचन करना चाहिए।

    शुरू होंगे शुभ कार्य - मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। संक्रांति शब्द का अर्थ है, सूर्य अथवा कोई भी ग्रह एक राशि से दूसरी में प्रवेश करना। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही भगवान भाष्कर उत्तरायण होंगे और खरमास की समाप्ति हो जाएगी। इसके साथ ही शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। जबकि सूर्य जब कर्क राशि में आते हैं, दक्षिणायन हो जाते हैं। इस काल में शुभ कार्य निषेध हो जाता है। उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन उनकी रात्रि मानी जाती है।

    हिंदुओं के लिए साल का पहला पर्व मकर संक्रान्ति होता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति से जुड़ी रोचक बातें, जो शायद आप नहीं जानते मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। त्योहार एक रूप अनेक इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। हर साल संक्रांति अपने भक्तों के लिए कुछ ना कुछ लेकर आती है।

    पौष माह में सूर्य देवता शीत की जड़ता को समाप्त करके मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की मूल धारणा प्रकृति को नमन करना है। इसमें सूर्य पूजन सर्व प्रधान माना गया है। यह पर्व सूर्य उपासना का सबसे बड़ा पर्व है। सूर्योपासना हम सभी के जीवन से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई है। वेदों में भी सूर्य को विशिष्ट महत्व दिया गया है। सूर्य देवता ज्योतिष विज्ञान और प्रकृति दोनों के

    ही आधार हैं। उनकी आराधना से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का क्षय होता है। हिंदू धर्म में मकर (घड़ियाल) को एक पवित्र जलचर माना गया है। यह माना जाता है कि हिंदुओं के अधिकतर देवताओं का पदार्पण भूमध्य रेखा के उत्तर, यानी उत्तरी गोलाद्र्ध में हुआ है, इसलिए सूर्य की उत्तरायण स्थिति को शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन (दक्षिणायन से उत्तरायण) माना जाता है। चूंकि सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अतएव इस दिन से दिन के समय में वृद्धि और रात्रि के समय में क्रमश: कमी होती जाती है।

    सूर्य के उत्तरायण के महत्व के कारण ही शर शैय्या पर पड़े भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं त्यागे, जब तक सूर्य की उत्तरायण स्थिति अर्थात मकर संक्रांति नहीं आ गई। माना जाता है कि मकर संक्रांति के ही दिन भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर गंगा, सागर में जा मिली थीं। इस दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मान्यता है कि मकर राशि के स्वामी शनिदेव हैं, जो सूर्यदेव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं।

    शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए इस दिन तिल का दान और सेवन किया जाता है।

    खिचड़ी की लोकप्रियता- इस दिन चावल और काली उड़द की दाल से मिश्रित खिचड़ी बना कर खाने व दान करने का भी विधान है। इसके पीछे यह वैज्ञानिक आधार है कि इसमें शीत को शांत करने की शक्ति होती है। अत: मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में इसे महापर्व का दर्जा दिया गया है। मकर संक्रांति प्रगति, ओजस्विता, सामाजिक एकता व समरसता का पर्व है। यह सूर्योत्सव का द्योतक है। संपूर्ण

    भारतीय गणराज्य में कोई भी प्रदेशऐसा नहीं है, जहां यह पर्व किसी न किसी रूप में न मनाया जाता हो। वास्तव में यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें हमारे देश की बहुरंगी संस्कृति के दर्शन होते हैं। मकर संक्रांति जैसे त्योहार व्यक्ति व समाज को उस नैसर्गिकता की ओर ले जाते हैं, जहां व्यक्ति अपनी धरती की गंध में डूब कर नव-ऊर्जा अर्जित करता है और

    संक्रांति शब्द का अर्थ है-एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना अथवा एक-दूसरे से मिलना। सूर्य जब एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तब उसे संक्रांति कहते हैं। राशियां 12 हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इनमें मेष, कर्क, तुला और मकर राशियां महत्वपूर्ण हैं। सूर्य

    जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उसी के नाम से संक्रांति जानी जाती है। सूर्य की स्थिति के आधार पर पूरा वर्ष

    उत्तरायण एवं दक्षिणायण (6-6 माह के) दो बराबर भागों में बंटा होता है। जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है, तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है, तो उसे दक्षिणायन कहा जाता है। प्रतिवर्ष प्राय: मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हंै। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस वर्ष मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी की प्रात: होगा। इसलिए मकर संक्रांति का पुण्य काल शुक्रवार 15 जनवरी को सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहेगा।

    मकर संक्रांति के अलग-अलग स्वरूप- देश के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के विविध स्वरूप हैं :

    उत्तर प्रदेश में विभिन्न पवित्र नदियों में श्रद्धालु स्नान करके सूर्य की पूजा करते हैं। साथ ही चावल व उड़द की दाल मिश्रित खिचड़ी, चूड़ा-दही, गुड़ व तिल के लड्डुओं आदि का दान करते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर

    स्थिति गोरखनाथ मंदिर में वृहद् खिचड़ी मेला लगता है। वृंदावन स्थित ठाकुर राधावल्लभ मंदिर में प्रति वर्ष मकर संक्रांति के तीन दिन पूर्व पौष शुक्ल द्वितीया से माघ शुक्ल द्वितीया तक लगभग एक माह खिचड़ी महोत्सव मनाया जाता है। बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचल में यह धारणा है कि मकर संक्रांति से सूर्य का स्वरूप

    तिल-तिल बढ़ता है, इसलिए इसे तिल संक्रांति कहा जाता है। नेपाल से असंख्य श्रद्धालु भारत आकर मकर संक्रांति के दिन पिथौरागढ़ में पांच नदियों के संगम स्थित पंचमेश्वर महादेव मंदिर में खिचड़ी चढ़ाते हैं। राजस्थान में यह पर्व उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब में यह त्योहार मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व लाल लाही (लोहड़ी) के रूप में मनाया जाता है। यहां यह त्योहार नई फसल की कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियां विभिन्न सार्वजनिक स्थलों पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परंपरागत वेशभूषा में गिद्धा व भांगड़ा नृत्य करते हैं। यहां इस दिन मक्के का लावा, मक्के की रोटी, सरसों का साग और गन्ने के रस की खीर

    विशेष रूप से बनाई जाती है। मध्य प्रदेश में यह पर्व ओंकारेश्वर संक्रांति के नाम से मशहूर है। महाराष्ट्र में महिलाएं रंगोली सजाती हैं और सूर्य देवता की पूजा करती हैं। पश्चिम बंगाल में समूचे देश से असंख्य भक्त-श्रद्धालु गंगासागर द्वीप पर एकत्रित होते हैं।

    दक्षिणी राज्यों में मकर संक्रांति का पर्व पोंगल के नाम से लगातार चार दिनों तक मनाया जाता है। इन सभी राज्यों में खिचड़ी व गुड़ भगवान को अर्पित कर उसका प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

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