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    Guru Ramdas Prakash Utsav: चौथे सिख गुरु रामदास जी ने दी जीवन मूल्यों की प्रेरणा

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Thu, 21 Oct 2021 11:40 AM (IST)

    जीवन की हर स्थिति में सहजता व सैद्धांतिक संकल्पों की दृढ़ता का बने रहना श्रेष्ठ अंतर अवस्था का सुफल होता है। यह अवस्था परमात्मा की भक्ति आस्था और समर्पण से प्राप्त होती है। चौथे सिख गुरु गुरु रामदास जी का स्वयं का जीवन इस दार्शनिक अवधारणा का मूर्त रूप था।

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    Guru Ramdas Prakash Utsav: चौथे सिख गुरु रामदास जी ने दी जीवन मूल्यों की प्रेरणा

    Guru Ramdas Prakash Utsav: जीवन की हर स्थिति में सहजता व सैद्धांतिक संकल्पों की दृढ़ता का बने रहना श्रेष्ठ अंतर अवस्था का सुफल होता है। यह अवस्था परमात्मा की भक्ति, आस्था और समर्पण से प्राप्त होती है। चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी का स्वयं का जीवन इस दार्शनिक अवधारणा का मूर्त रूप था और मानवता को भी उन्होंने इसी मार्ग पर चलने को प्रेरित किया। उनका जन्म लाहौर में हुआ था, किंतु बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण वे नानी के पास बासरके गांव में आ गये, जो अब अमृतसर में है।

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    आरंभ से ही जीविकोपार्जन के साथ ही गुरु रामदास जी, जिनका नाम उस समय भाई जेठा जी था, का मन गुरु अमरदास जी की शरण में आ भक्ति में रमने लगा। अपनी भावना व सेवा से उन्हें गुरु अमरदास जी की कृपा प्राप्त हुई। गुरु अमरदास जी की छोटी सुपुत्री से विवाह के बाद भी उनके अंतर गुण उत्तरोत्तर पल्लवित होते गये।

    जब वह गुरुगद्दी पर आसीन हुए तो धर्म प्रचार के साथ ही सृजनात्मक कार्यों में भी रुचि लेने लगे। आज जिस सरोवर में श्री हरिमंदर साहिब स्थित है, उसका निर्माण गुरु रामदास जी ने ही कराया था। गुरु साहिब ने सात सौ अकबरी रुपये में जमींदारों से पांच सौ बीघा जमीन प्राप्त कर उस पर अमृतसर नगर बसाया। इस नगर में उन्होंने भिन्न-भिन्न जातियों के श्रमिकों, कारीगरों को बुलाकर बसाया और सहायता की। यह श्रम का विलक्षण सम्मान था, जो सिख धर्म के मौलिक सिद्धांतों का अंग है।

    गुरु साहिब को सिख संगतें भावना वश जो भी भेंट अर्पित करतीं, उसका उपयोग अमृतसर नगर के विकास के लिए किया गया। इस नगर को वे भक्ति और श्रम-सेवा का संगम बनाना चाहते थे। गुरु रामदास जी ने जीवन में संयम व अनुशासन को विशेष स्थान देते हुए रात के अंतिम पहर में ही जाग कर स्नान आदि करने व परमात्मा की भक्ति करने की प्रेरणा दी। मनुष्य अपने कार्य करते हुए मन में परमात्मा के प्रति प्रेम भावना को भी सजीव रखे। मानव जीवन को गुरु रामदास जी ने बड़े पुण्य कमरें का फल बताते हुए इसके सदुपयोग का उपदेश दिया।

    उन्होंने मानव तन की तुलना घोड़ी से करते हुए कहा कि इस तन की सार्थकता गुरु के ज्ञान की लगाम डाल कर और प्रेम के चाबुक से हांकते हुए आवागमन से मुक्ति के लक्ष्य की ओर ले जाने में है। जैसे घोड़ी की शोभा उस पर कसी हुई जीन से होती है, वैसे ही परमात्मा का नाम ही तन की सच्ची शोभा है और चंचल मन को वश में करने का मार्ग। गुरु रामदास जी ने धर्म प्रचार के लिए योग्य सिखों को दूरस्थ स्थानों पर भेजा और गुरुवाणी की हस्तलिखित प्रतियां भी उपलब्ध कराईं। उन्होंने कहा कि अज्ञानी और माया-विकारों में मुग्ध सांसारिक मनुष्य का उद्धार परमात्मा की कृपा से प्राप्त बुद्धि और विवेक से ही संभव है।

    डा. सत्येन्द्र पाल सिंह, सिख दर्शन के अध्येता