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    Guru Nanak Jayanti 2024: सभी के लिए अमृत-संजीवनी है नानक वाणी, यहां पढ़े उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

    Updated: Mon, 11 Nov 2024 03:50 PM (IST)

    त्याग व सेवा को उच्चादर्श मानने वाले सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी से भटके हुए लोगों को कल्याण का मार्ग दिखाया। इसके साथ ही उन्होंने कई देशों की सीमाओं को लांघकर पूरे विश्व के सोच को नई जीवनदृष्टि से जोड़ा तो चलिए उनके प्रकाश पर्व से पूर्व उनसे जुड़ी कुछ प्रमुख बातों को जानते हैं।

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    Guru Nanak Jayanti 2024: सभी के लिए अमृत-संजीवनी है नानक वाणी।

    प्रो. हरमहेंद्र सिंह बेदी (कुलाधिपति, केंद्रीय विश्वविद्यालय, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश)। श्री गुरु नानक देव जी का प्रभाव सिखों के साथ-साथ संपूर्ण भारतीय समाज, संस्कृति एवं आध्यात्मिक चिंतन पर अत्यंत गहरा है। गुरु नानक देव ने देशों की सीमाओं को लांघकर पूरे विश्व के सोच को नई जीवनदृष्टि से जोड़ा। सदैव उनके साथ रहने वाले शिष्य भाई गुरदास कहते हैं, ‘गुरु नानक देव जी के प्रकट होने पर संसार में व्याप्त धुंध विलुप्त हो गई एवं सृष्टि ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो उठी।’ कला, संस्कृति, धर्म व तत्कालीन समाज को नई ऊर्जा मिली। भटके लोगों को गुरु नानक की वाणी ने नया मार्ग दिखाया। गुरु नानक ने किर्तन करना, नाम जपना व वंड (बांटकर) छकना (खाना) सिखाया, जो उनके दर्शन का मूलभूत संदेश है।

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    पाखंड के विरुद्ध जयघोष

    मध्यकाल में भारतीय धर्म व दर्शन के पुनर्जागरण में उनकी महती भूमिका है। गुरु नानक देव ने समाज को अंधविश्वास, गले-सड़े रीति रिवाजों व बुरे आचरण के प्रति सचेत किया और उसे अपने अस्तित्व के प्रति जाग्रत किया। जपुजी साहिब में जिस ऊंचे आचरण का पक्ष गुरु नानक देव लेते हैं, वह पाखंड के विरुद्ध जयघोष है।

    भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत में पैदा हुआ।

    15वीं शताब्दी में उत्तर भारत में इस आंदोलन ने क्रांतिकारी परिवर्तन किए। भक्त कवियों का एक ध्येय था कि रंग या जाति के भेद तथा भाषा व लिपि की दीवारें न हों। संतों का यह सपना उत्तर भारत में गुरु नानक देव की वाणी में सत्य होता दिखा। गुरु नानक देव भी देशों की सीमाओं को लांघकर पूरे विश्व को एक सूत्र में बांधने निकले थे।

    आक्रमण की आलोचना

    गुरु नानक ने मुगल राजा बाबर के आक्रमण की आलोचना करने का भी साहस दिखाया। ‘बाबर बाणी’ में उन्होंने भारतवासियों को ‘हिंदुस्तानी’ कहकर संबोधित किया। यह मध्यकाल के काव्य चिंतन में पहला ऐसा संबोधन है, जिसमें भौगोलिक व कौमियत के संकल्प को राष्ट्र से जोड़ा गया है। इस दृष्टि से गुरु नानक देव पहले राष्ट्रीय चिंतक हैं, जो भारत की अखंडता के प्रश्न को अतिरिक्त सम्मान से उठाते हैं।

    ज्ञान व प्रेम को जीवन का मूलाधार मानने वाले नानक चाहते थे कि जन साधारण पलायनवादी न हो, क्योंकि उनकी दृष्टि में मुक्ति जंगलों में भटककर नहीं, अपितु घर-परिवार में रहते हुए जीवन के संघर्षों से जूझते हुए ही प्राप्त की जा सकती है। त्याग व सेवा को उन्होंने मानव का सर्वोच्च आदर्श माना। नारी को वह उच्च सम्मान देने के पक्षधर थे।

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    नानक वाणी की अमृत-संजीवनी

    गुरु नानक देव जी महान रचनाकार थे। उनकी प्रमुख वाणियों (बानी) में जपुजी साहिब, आसा दी वार, पट्टी, बारहमाह, सिध गोष्टि इत्यादि हैं। उनकी वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है, जिसकी धुरी गुरु नानक देव द्वारा रचित ‘मूलमंत्र’ है। उनकी वाणी का आकाश उन सार्थक सच्चाइयों में व्याप्त है, जहां न भय है, न वैर है, न विरोध है और न ही असत्य है।

    गुरु नानक देव की दृष्टि में दुख व सुख तभी तक प्रभावित कर सकते हैं, जब तक मानव ‘नाम’ की महिमा से अवगत नहीं है। वैश्वीकरण के जिस दौर से आज हम गुजर रहे हैं, उसमें नानक वाणी की अमृत-संजीवनी सबके लिए कल्याण का मार्ग है। गुरुपर्व की इस शुभ वेला का यही संदेश है।

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