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    Ganga Dussehra 2024: भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं मां गंगा

    गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि जगत जननी मां हैं। गंगा केवल जल का ही नहीं जीवन का भी स्रोत हैं। मां गंगा ने मनुष्य को जन्म तो नहीं दिया लेकिन जीवन तो दिया ही है। हमारी आत्मा को अपने आस्था रूपी जल से हमेशा पवित्र किया है। सूर्यवंशी राजा सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिए दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ।

    By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 09 Jun 2024 12:25 PM (IST)
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    Ganga Dussehra 2024: भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं मां गंगा

    स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश): गंगा दशहरा के पावन अवसर पर मां गंगा, भगवान शिव की जटाओं से धरती पर अवतरित हुई थीं। वैशाख शुक्ल सप्तमी को पतित पावनी, जीवन व जीविका दायिनी मां गंगा धरती पर अवतरित होने के लिए तीव्र वेग से आगे बढ़ीं, तो भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया। सूर्यवंशी राजा सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिए दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ। तब से लेकर आज तक वह इस पुण्यधरा भारत भूमि का उद्धार करती आ रही हैं।

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    भारत के लिए मां गंगा किसी वरदान से कम नहीं हैं। वह सतयुग से लेकर आज तक करोड़ों श्रद्धालुओं को शांति, मुक्ति, भक्ति व आनंद प्रदान कर रही हैं। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि मां हैं। गंगा केवल जल का ही नहीं, जीवन का भी स्रोत हैं। मां गंगा ने मनुष्य को जन्म तो नहीं दिया, लेकिन जीवन तो दिया ही है। हमारी आत्मा को अपने आस्था रूपी जल से हमेशा पवित्र किया है। मां गंगा भारतीय संस्कृति की संरक्षक व संवाहक भी हैं।

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    भारत की पहचान मां गंगा से है, जो युगों-युगों से मानवीय चेतना का संचार कर रही हैं। वह भारत की शुद्धता, शुचिता, आस्था व पवित्रता लिए निरंतर प्रवाहित हो रही हैं। सतयुग में सूर्यवंश की आस्था ही थी कि मां गंगा हमारे पूर्वजों का उद्धार करेंगी और भगीरथ की घोर तपस्या ने उस आस्था को चरितार्थ कर दिया। आज भी बनारस का दशाश्वमेध घाट हो या फिर हरिद्वार की हर की पैड़ी या अन्य कोई घाट, श्रद्धालु सोचते हैं जीते-जी एक बार गंगा जी के जल में एक डुबकी-एक आचमन ही मिल जाए।

    जो जीते-जी तो नहीं जा सके, वो सोचते हैं कि कम से कम अंतिम संस्कार ही गंगा के तट पर हो जाए, अंतिम संस्कार न सही, अंतिम समय में दो बूंद गंगाजल ही मिल जाए तो भी उनके प्राणों का उद्धार हो जाएगा। जो लोग विदेश में रहते हैं, शाम को परमार्थ गंगा आरती शुरू होने से पहले इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को खोलकर हाथों में पूजा का थाल लेकर इंतजार करते हैं कि गंगाजी का ऑनलाइन ही सही, दर्शन तो हो जाए।

    जो विदेश की धरती पर प्राण त्याग देते हैं, उनकी अस्थियां महीनों, कभी-कभी वर्षों एक छोटे से कलश में बंद रहती हैं कि कोई भारत जाएगा तो उन्हें गंगा में प्रवाहित कर देगा। अद्भुत आस्था है। सतयुग से लेकर कलयुग तक गंगा के प्रति श्रद्धालुओं की जो आस्था है, उसमें कमी नहीं आई। यह है गंगा का प्रताप, गंगा की पवित्रता का प्रताप, उसके मौन का प्रताप, उसकी शांति का प्रताप और उसकी मुक्ति की शक्ति का प्रताप, लेकिन अब गंगाजी सहित अन्य नदियों के जीवन को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है।

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    हम बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर पर्यावरण और सभी के बेहतर जीवन के लिए आगे आएं और अपने पर्व-त्योहार, जन्म दिवस व वैवाहिक वर्षगांठ पर पौधों का रोपण करें। सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करें ताकि हमारी नदियां कलकल करती बहती रहें, सबका भरण-पोषण करती रहें, ताकि कोई भी पीछे न छूट जाए।