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जीवन जीने की राह दिखाते हैं प्रभु यीशु के अनमोल वचन

ईसाई धर्म के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल में प्रभु यीशु के जीवन का वृतांत है। उन्होंने लोगों को सत्य पर चलने की सीख दी। उनके कई जानने वाले ने उन्हें धोखा दिया। इसके बावजूद प्रभु यीशु विचलित नहीं हुए। अंत में पृथ्वीवासी की भलाई के लिए स्वंय शूली पर चढ़ गए।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 08:16 PM (IST)Updated: Fri, 24 Dec 2021 07:20 AM (IST)
जीवन जीने की राह दिखाते हैं प्रभु यीशु के अनमोल वचन
जीवन जीने की राह दिखाते हैं प्रभु यीशु के अनमोल वचन

हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। इस दिन प्रभु यीशु का जन्म हुआ है। परम पिता परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु का जन्म एक बढ़ई परिवार में हुआ था। उनकी माता मरियम थी और पिता जोसफ था। प्रभु यीशु ने अपना जीवन लोगों की भलाई में न्योछावर कर दिया। ईसाई धर्म के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल में प्रभु यीशु के जीवन का वृतांत है। उन्होंने लोगों को सत्य पर चलने की सीख दी। उनके कई जानने वाले ने उन्हें धोखा दिया। इसके बावजूद प्रभु यीशु विचलित नहीं हुए। अंत में पृथ्वीवासी की भलाई के लिए स्वंय शूली पर चढ़ गए। जब शूली चढ़ने के दो दिन बाद प्रभु जीवित हो उठे, तो उनके शिष्यों को प्रभु की बातों पर यकीन हो गया। वे प्रभु के चरणों में गिर गए और रोकर क्षमा करने की याचना की। प्रभु ने उन सबको माफ़ किया। प्रभु ने कहा-जो मेरी राह पर चलेगा। वह स्वर्ग को जाएगा। अतः आओ सत्य पर चलकर परमेश्वर को पाओ। आज भी उनके वचन प्रासंगिक हैं, जिनका विस्तार से वर्णन बाइबिल में है। आइए, प्रभु यीशु के अनमोल वचन जानते हैं-

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1.

आप आने वाले कल के बारे में सोचकर कभी भी चिंतित मत होना,

क्योंकि हर दिन की अपनी परेशानी होती है,

और वह परेशानी उसी दिन के खत्म होने के साथ चली भी जाती है।

2.

एक दुसरे की सेवा करना ही हमारा धर्म है,

जो लोग दुसरो की मदद करते है ईश्वर उन्हीं की मदद करते है,

इसलिए मन से स्वार्थ और लालच की भावना का त्याग कर देना ही उचित है।

3.

तुम्हें बुरे काम और व्यभिचारिता नही करनी चाहिए,

कभी भी हत्या,चोरी और लालच जैसे बुरे काम नही करना चाहिए,

सदैव सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलते हुए दुःखी लोगों की भलाई के लिए काम करना चाहिए।

4.

जब आप दान करते हैं, तो आपके बाएं हाथ को पता नहीं होना चाहिए कि आपका दाहिना हाथ क्या करता है, ताकि आपका दान गुप्त हो, और तब आपका पिता, जो गुप्त में देखता है, आपको पुरस्कृत करेगा।

5.

जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजने वाले को ग्रहण करता है । जो मसीहा को मसीहा जानकर ग्रहण करे, वह मसीहा का पुरस्कार पाएगा और जो धार्मिक जानकर धार्मिक व्यक्ति को ग्रहण करे, वह धार्मिक का पुरस्कार पाएगा।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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