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    आदि काल से पूरी दुनिया में होती आई है शिवजी की पूजा

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 12 Mar 2016 02:33 PM (IST)

    शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह अलग है। प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है। मन अशान्त हो, मानसिक परेशानी हो तो चन्द्रमा के लिए शिव पूजा, मंगल अपनी हदों को पार कर जब भी हमें परेशान करता

    शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा के विषय में जो तथ्य मिलता है वह अलग है। प्रतीकात्मक रूप में शिव के लिंग की पूजा की जाती है। मन अशान्त हो, मानसिक परेशानी हो तो चन्द्रमा के लिए शिव पूजा, मंगल अपनी हदों को पार कर जब भी हमें परेशान करता है तब भी हम शिव की शरण में जाते हैं अर्थात हमें जन्म से लेकर मृत्यु तक जब भी समस्या होती है हम शिव का सहारा लेते हैं, भगवान शिव व महालक्ष्मी का जगत में भ्रमण काल शाम व रात्रि के शुभ कालों में ही माना गया है। हिन्दु धर्म में भगवान शिव का सबसे बड़ा स्थान है। इन्हें कई नामों से लोग पुकारते हैं। कोई इन्हें भोले नाथ कहता है, तो कोई देवों के देव महादेव कहता है।शिव एक ऐसे भगवान हैं जिनके लिंग की भी पूजा की जाती है और इसे सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पूजा जाता है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सो में मिलने वाले शिव लिंग इस बात को प्रमाणित भी करते हैं।

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    भारत और श्रीलंका के अलावा भगवान शिव की पूजा के प्रमाण रोमन के वक़्त में भी मिलते हैं। पुरातत्व विभाग को Babylon नामक एक पुराने शहर में शिवलिंग मिले थे। ये शहर रोमन्स के वक़्त का है, और खुदाई के दौरान शहर के कई हिस्सो में पुरातत्व विभाग को शिवलिंग मिले थे।

    शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा होता है आधार। जिसके ऊपर बाकी दो हिस्से टिके होते हैं। दूसरा हिस्सा होता है संचालन, जो बीच का हिस्सा होता है। तीसरा हिस्सा शिवलिंग का प्रतिक है जिसकी पूजा की जाती है। दरअसल इन तीन हिस्सों को भगवान के तीन रूपों में भी देखा जाता है।आधार को ब्रह्मा, संचालन को विष्णु और तीसरे हिस्से को शिव माना जाता है।

    शिवलिंग में भगवान शिव के दोनों रूप रचनात्मक और विनाशक की झलक एक साथ दिखती है। कुछ लोग योनि और लिंग के रूप में इसे देखते हैं, जो की एक रचनात्मक रूप है। वहीं शिवलिंग विनाश के ठीक बाद शुरू होने वाली उत्पत्ति की भी निशानी है, जिसका मतलब है विनाश होना निश्चित है।

    शिव को कई लोग निराकार मानते हैं। शिवलिंग को सिर्फ़ शिव का लिंग देखना पूरी तरह सही नहीं है। स्वामी विवेकानंद ने शिवलिंग के बारे में कहा था कि शिवलिंग ब्रह्म रूप है और इसलिए इसकी पूजा की जाती है।

    शिवलिंग का आकार अंडे जैसा होता है, जो कि जन्म और वृद्धि का संकेत है। कुछ शिवलिंग के आकार के पत्थर होते हैं जो प्रकृति द्वारा बनाए जाते हैं, तो वहीं कुछ शिवलिंग इंसानों द्वारा बनाए जाते हैं।

    शिवलिंग के 5 अलग-अलग प्रकार होते हैं। पहला प्रकार है देवलिंग, जिसकी आज हम पूजा करते हैं और कहा जाता है कि इस लिंग की रचना देवों ने की थी। दूसरा प्रकार है असुपलिंग। शिव को सिर्फ़ देवता ही नहीं बल्कि दानव भी पूजते थे। और दानवों द्वारा भी शिवलिंग की रचना की गई थी, जिसे असुपलिंग कहा जाता है।

    तीसरा प्रकार है अरशालिंगा। आदी काल में योगी और ऋषिमुनि जिस रूप में शिवलिंग की पूजा करते थे उसे अरशालिंगा कहा जाता है। चौथा प्रकार है मनुशालिंगा। जिसे पुराने वक़्त में किसी राजा द्वारा बनवाया गया है।पाचवां प्रकार है स्वयंभुलिंग। ये वो लिंग हैं जिससे भगवान शिव प्रकट हुए हों।

    आयरलैंड के Tara Sits पर एक पत्थर है जिसे Lia Fáil नाम से जाना जाता है। एक ने संत ने इस पत्थर के बारे में लिखा था, कि ये शिव का रूप है। कई लोग मानते हैं कि आयरलैंड पहले एक हिन्दु राष्ट्र था, वहां शिव की पूजा होती थी। इस कारण ही इस पत्थर को Stone of Destiny भी कहते हैं।

    Lia Fáil आयरलैंड के लिए एक पूज्यनिय पत्थर है। हर आईरिश राजा इसकी पूजा करते थे।

    वियतनाम में भी अलग-अलग जगहों पर हज़ारों साल पुराने शिवलिंग मिले हैं। जिससे पता चलता है कि सालों पहले वियतनाम में भी शिव की पूजा होती थी।

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