एकादशी व्रत करने का अर्थ है- अपनी इंद्रियों पर निग्रह करना
ज्येष्ठ माह में कृष्णपक्ष की एकादशी अचला एकादशी या अपरा एकादशी कही जाती है। इस दिन व्रत और पूजन की बड़ी महिमा है। इस एकादशी को धन-धान्य, कीर्ति और पुण्य प्रदान करने वाली माना जाता है। यह माना जाता है कि यह सभी तरह के पापों का नाश करती है। अचला एकादशी के दिन व्रत से जन्म-जन्मांतर के पाप और कलुषों का नाश होता है। माना जाता
ज्येष्ठ माह में कृष्णपक्ष की एकादशी अचला एकादशी या अपरा एकादशी कही जाती है। इस दिन व्रत और पूजन की बड़ी महिमा है। इस एकादशी को धन-धान्य, कीर्ति और पुण्य प्रदान करने वाली माना जाता है। यह माना जाता है कि यह सभी तरह के पापों का नाश करती है।
अचला एकादशी के दिन व्रत से जन्म-जन्मांतर के पाप और कलुषों का नाश होता है। माना जाता है कि माघ में सूर्य के मकर राशि में होने पर प्रयाग स्नान, शिवरात्रि पर काशी में रहकर किया गया व्रत, गया में पिंडदान, वृषभ राशि में गोदावरी स्नान, बद्रिकाश्रम में भगवान केदार के दर्शन या सूर्यग्रहण पर कुरुक्षेत्र में स्नान और दान करने से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से प्राप्त होता है।
इस दिन उपवास करके भगवान के वामन अवतार की पूजा करने से मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल सहित भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। देश में कहीं-कहीं बलराम-कृष्ण भी पूजा भी होती है।
कहते हैं इस एकादशी के फल के बारे में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि अपरा एकादशी पुण्य प्रदाता और बड़े पापों का नाश करने वाली है। इस दिन व्रत करने वाला किसी भी तरह के पाप से मुक्त होकर अंतत: विष्णुलोक में प्रतिष्ठा पाता है।
विष्णु पूजन शुभ फलदायी
अपरा एकादशी व्रत के दिन पूजा अर्चना का विशेष विधान रहता है। इस व्रत का प्रारंभ दशमी तिथि से ही हो जाता है। व्रतधारक को दशमी तिथि से ही भोजन और आचार-विचार में संयम रखना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: जल्दी उठकर अन्य क्त्रियाओं से निवृत्त हो स्नान आदि के पश्चात भगवान विष्णु का पूजन किया जाना चाहिए। संध्या समय में भगवान को फल-फूल का भोग लगाकर धूप दीप से उनका पूजन करना चाहिए। इस व्रत की कथा का श्रवण करने से भी विष्णुजी की कृपा प्राप्त होती है।
इंद्रियों पर नियंत्रण के लिए एकादशी व्रत
शास्त्रों में कहा गया है- आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथि विद्धि येन श्रेयोऽहमाप्यनुयाम। अर्थात आत्मा को रथी जानो, शरीर को रथ और बुद्धि को सारथी मानो। इनके संतुलित व्यवहार से ही श्रेय अर्थात श्रेष्ठत्व की प्राप्ति होती है।
इसमें इंद्रियों का अश्व तथा मन का लगाम होना भी अंतर्निहित है। ऋषियों ने अन्य मंत्रों में इसका भी जिक्र किया है। इस प्रकार दस इंद्रियों के बाद मन को ग्यारहवीं इंद्रि माना गया है। अतएव इंद्रियों की कुल संख्या एकादश होती है।
एकादशी तिथि को मन:शक्ति का केंद्र चंद्रमा क्षितिज की एकादशवीं कक्षा पर अवस्थित होता है। यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाए तो वह सद्य: फलवती सिद्ध हो सकती है।
इसी वैज्ञानिक आशय से एकादशी पर धर्मानुष्ठान और व्रतोपवास का विधान है। संक्षेप में कहा जाए तो एकादशी व्रत करने का अर्थ है- अपनी इंद्रियों पर निग्रह करना।
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