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    सकारात्मक ऊर्जा में सृजनशीलता का भाव होता

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    Updated: Wed, 18 Jun 2014 12:46 PM (IST)

    यह पूरा ब्रह्मंड वस्तुत: एक विशाल ऊर्जापुंज है। समस्त वस्तुएं ऊर्जा की ही विभिन्न रूप हैं। ऊर्जा स्वयं सदा सकारात्मक होती है। इसके प्रयोग दो प्रकार के होते हैं-सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक ऊर्जा में सृजनशीलता का भाव होता है और वह संसार को निरंतर विकासमान बनाए रखती है। सकारात्मक ऊर्जा ही वस्तुत: प्रवाहमान शक्तिपुंज है, जिसस

    सकारात्मक ऊर्जा में सृजनशीलता का भाव होता

    यह पूरा ब्रह्मंड वस्तुत: एक विशाल ऊर्जापुंज है। समस्त वस्तुएं ऊर्जा की ही विभिन्न रूप हैं। ऊर्जा स्वयं सदा सकारात्मक होती है। इसके प्रयोग दो प्रकार के होते हैं-सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक ऊर्जा में सृजनशीलता का भाव होता है और वह संसार को निरंतर विकासमान बनाए रखती है।
    सकारात्मक ऊर्जा ही वस्तुत: प्रवाहमान शक्तिपुंज है, जिससे सृष्टि चलायमान है। ऊर्जा का नकारात्मक प्रयोग विनाश का कारण बनता है। व्यक्ति के विकास के लिए उसका ऊर्जस्वित होना आवश्यक है। हम जहां रहते हैं, वहां आसपास विभिन्न प्रकार के ऊर्जापुंज परस्पर संपर्क में रहते हैं। हम अपने जीवन में हर दिन ऊर्जावान और ऊर्जाहीन व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं। सकारात्मक व्यक्ति का संपर्क मात्र हममें सकारात्मकता का संचार करता है, जबकि नकारात्मक व्यक्ति का संपर्क हमें अवसादग्रस्त बना देता है। सकारात्मकता के सृजन से अधिक ऊर्जा का क्षय नकारात्मकता के दमन में होता है। व्यक्ति की सफलता इस बात से निर्धारित होती है कि उसमें कार्य के प्रति लगन कितनी है और उसमें ऊर्जा के प्रवाह का स्तर कितना है। आत्मविश्वास किसी भी कार्य का प्रथम अपरिहार्य चरण है। आत्मविश्वास के सृजन में सकारात्मक ऊर्जा का सर्वाधिक योगदान है। आत्मविश्वासपूर्ण व्यक्ति अपने जीवन में विभिन्न ऊंचाइयों और लक्ष्यों को अन्य लोगों की अपेक्षा सरलतापूर्वक प्राप्त कर लेता है। सकारात्मक ऊर्जा वह प्रेरणापुंज है जो निरंतर इस बात की शिक्षा देती है कि आपके पैर भले गहन अंधकार में चल रहे हों, पर नेत्रों में सूर्य की ज्योति होनी चाहिए।
    आज का समय सकारात्मकता के प्रवाह और नकारात्मकता के पराभव का है। आज भारत अपनी ऊर्जा के उच्चतम स्तर से ओतप्रोत है। अब यह आवश्यक है कि यह ऊर्जा सकारात्मकता के सृजन में व्यय हो या फिर नकारात्मकता के दमन में। यदि सूर्य निकलेगा तो अंधकार स्वयमेव तिरोहित होगा। इसलिए हमें अंधकार के तिरोहित होने से अधिक सूर्य के निकलने का प्रयास करना चाहिए। सूर्य ऊर्जा का वह पुंज है जो सारे जगत को ऊर्जावान बनाता है। सूर्य को प्राथमिक ऊर्जा कहें, तो अतिशयोक्ति कदापि न होगी। आज हमें सूर्य को पूजने और अंधकार को तजने की जरूरत है। तभी सकारात्मक ऊर्जा के साथ कदम-दर-कदम बढ़ाते हुए देश को प्रगति पथ पर आगे ले जाना संभव हो सकेगा।

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