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    Chhath Puja 2023: सूर्य देव की उपासना मात्र से समस्त चराचर जगत का कल्याण संभव है

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 13 Nov 2023 12:58 PM (IST)

    सूर्याथर्वशीर्ष में सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं हि गच्छन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च।। द्वारा भी यह स्पष्ट किया गया है कि समस्त चराचर प्राणी सूर्य से ही उत्पन्न हुए हैं तथा अंत में सूर्य में ही उनका लय हो जाता है इसीलिए जो जीव इस संसार से अपनी जीवन लीला त्यागकर चला जाता है उसे हम स्वर्गवासी कहते हैं।

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    Chhath Puja 2023: सूर्य देव की उपासना मात्र से समस्त चराचर जगत का कल्याण संभव है

    प्रो. मुरली मनोहर पाठक, नई दिल्ली। Chhath Puja 2023: वेदों में अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चंद्रमा देवता वसवो देवता... इत्यादि मंत्रों द्वारा अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रादि प्राकृततत्वों की स्तुति देवता के रूप में की गई है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कारों का मूल वेद है। इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् इस वचन के द्वारा यह भी सुस्पष्ट है कि पुराणादि की कथाएं वेदोक्त तात्विक संदर्भों का विस्तार से वर्णन करती हैं। अतएव स्कंदपुराण में प्रतिहारषष्ठी (सूर्यषष्ठी) व्रत कथा में सूर्योपासना का सांगोपांग वर्णन किया गया है। सूर्योपनिषद् में नूनं जनाः सूर्येण प्रसूताः कहा गया है अर्थात सभी लोग सूर्य से उत्पन्न हैं।

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    इसी प्रकार 'सूर्याथर्वशीर्ष में सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं हि गच्छन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च।।' द्वारा भी यह स्पष्ट किया गया है कि समस्त चराचर प्राणी सूर्य से ही उत्पन्न हुए हैं तथा अंत में सूर्य में ही उनका लय हो जाता है, इसीलिए जो जीव इस संसार से अपनी जीवन लीला त्यागकर चला जाता है, उसे हम स्वर्गवासी कहते हैं। इसका कारण यह है कि शास्त्रों के अनुसार, सात लोक प्रसिद्ध हैं भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः एवं सत्यम। इन सात लोकों में स्वः लोक सूर्य का लोक है।

    कहा गया है कि स्वः लोकं प्रति गच्छतीति स्वर्गः अर्थात स्वः लोक की ओर जाना ही स्वर्गमन है। सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। इस वेदवचन से भी यही अभिव्यक्त होता है कि सूर्य समस्त चराचर की आत्मा है। सूर्यदेव ही प्रकृति के मुख्य देवता हैं। सूर्य देव की उपासना मात्र से ही समस्त चराचर जगत का कल्याण संभव है। सूर्य देवोपासना संबंधी प्रतिहार षष्ठी (सूर्य षष्ठी) व्रत कथा में यह वर्णित है कि नैमिषारण्य में शौनकादि महर्षियों ने नाना दुःख से पीड़ित मनुष्यों को देखकर कृपापूर्वक उनके कल्याणार्थ श्रीसूत जी से इसका उपाय पूछा तो श्री सूतजी ने षष्ठी व्रत कथा का उपदेश किया था। ऐसा ही प्रश्न सत्यव्रत भीष्म मे महर्षि पुलस्त्य से पूछा था तो उन्होंने भी इसी व्रत का उपदेश करते हुए कहा था कि भास्करस्य व्रतं त्वेकं यूयं कुरुत सत्तमाः। सर्वेषां दुःखनाशो हि भवेत्तस्य प्रसादतः।। पुनः उक्त व्रत के विधि विषयक जिज्ञासा करने पर उन्होंने कहा :

    षष्ठ्याञ्चैव निराहारः फलपुष्पसमन्वितः।

    सरित्तटं समासाद्य गन्धदीपैर्मनोहरैः।।

    धूपैर्नानाविधैर्द्रव्यैर्नैवेद्यैर्घृतपाचितैः।

    गीतवाद्यादिभिश्चैव महोत्सवसमन्वितैः।।

    इसके अनुसार इस व्रत में निराहार रहकर नदी तट पर धूप, दीप, घृत, नैवेद्य आदि पदार्थ व नाना प्रकार के प्राकृतिक द्रव्यों के साथ सूर्य की पूजा उपासना की जाती है और गीत व वाद्य के साथ महोत्सव मनाया जाता है। इन विधियों का वर्णन छठपर्व की कथा में भी विस्तारपूर्वक किया गया है। चूंकि यह पर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए लोकभाषा में विशेष कर मैथिली भाषा में छठी पर्व कहा जाता है। यह महापर्व यह याद दिलाता है कि मनुष्य साक्षात रूप से प्रकृति का ही अंग है। मनुष्य का अस्तित्व प्रकृति के बिना कदापि संभव नहीं है। प्रकृति की उपासना से सर्वविध कल्याण होता है, ऐसा वेदों एवं पुराणों में स्पष्ट रूप से कहा गया है।

    प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने का परिणाम यह है कि बारंबार हमें प्रकृति के कोप का सामना करना पड़ता है। सूर्य पूजा की परंपरा वैदिककाल से रही है। नित्य सूर्यार्घ्य देने का विधान तैत्तिरीय आरण्यक में मिलता है। सूर्य प्रकृति का सर्जक है। साथ ही छठ पूजा में प्राकृतिक उपादानों का ही उपयोग होता है, जैसा कि उपर्युक्त कथा के वचनों से सिद्ध होता है। प्रकृति से हमारे जुड़ाव और उसके प्रति निर्भरता को यह लोक पर्व बड़ी सुंदरता के साथ दिखाता है। इस प्रकार यह पर्व लोक की उपयोगिता और आध्यात्मिकता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। वस्तुतः यह पर्व प्रमुख रूप से बिहार प्रदेश के मिथिला क्षेत्र में अनादिकाल से अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता रहा है।

    धीरे-धीरे इस पर्व की महत्ता को समझने पर इस पर्व को मनाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई। आज भारत के लगभग सभी राज्यों में यह पर्व मनाया जा रहा है। लोगों में इस पर्व के प्रति आस्था यह बताती है कि इस पर्व के अनुष्ठान से अवश्य ही सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है। काया के स्वास्थ्य के लिए काया के स्वामी सूर्य की उपासना मात्र ही हमारे कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं। 'नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय' इस वेद वचन से यह सिद्ध होता है कि सूर्योपासना के अतिरिक्त अन्य कोई भी ऐसा साधन नहीं, जिससे मानव का कल्याण हो सके। अतः जो भी व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के संरक्षण की भावना रखता है, उसे सूर्योपासनात्मक छठपर्व का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। इसकी फलश्रुति इस प्रकार कही गई है :

    व्रतेनानेन संतुष्टो दुःखं हरति भास्करः।

    चक्रुस्ते श्रद्धया युक्ताः स्वदुःखोपशान्तये।।

    यक्ष्मापस्मारकुष्ठादियुक्तः कषत्रियनन्दनः।

    कमनीयः स नारीणां त्रिभिर्वर्षैर्बलान्वितः।।

    पुत्रहीनो भवेत्पुत्री जीवत्पुत्रो मृतप्रजः।

    सुभगा पतिना त्यक्ता पत्युः प्राणसमा भवेत्।।

    उपर्युक्त फलश्रुति से यह सिद्ध होता है कि समस्त कामनाओं को पूर्ण करने हेतु यह पर्व अत्यंत उपयोगी है।