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    श्रीगणेश बने भालचंद

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Mon, 13 Oct 2014 02:41 PM (IST)

    करवा चौथ पर श्रीगणेश की पूजा एवं चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ने की परंपरा है। हमारी परंपराएं बिना कुछ समझे सिर्फ पालन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि उनमें निहित अर्र्थो को समझकर अपने जीवन को गति देने के लिए इन्हें निर्मित किया गया है। कार्तिक मास की कृष्णपक्ष संकष्टी गणेश चत्

    करवा चौथ पर श्रीगणेश की पूजा एवं चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ने की परंपरा है। हमारी परंपराएं बिना कुछ समझे सिर्फ पालन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि उनमें निहित अर्र्थो को समझकर अपने जीवन को गति देने के लिए इन्हें निर्मित किया गया है।

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    कार्तिक मास की कृष्णपक्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी ही करवा चौथ के नाम से जानी जाती है, इसलिए इस दिन परिवार में आसन्न संकटों को दूर करने के लिए भालचंद्र स्वरूप श्रीगणेश की पूजा की जाती है, जो हमें दांपत्य जीवन में ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शांतचित्त रहने की प्रेरणा देती है।

    भालचंद्र का अर्थ है, जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है। गणेश जी के इस स्वरूप के बारे में गणेश पुराण में एक कथा है, एक बार चंद्रमा ने आदिदेव गणपति का उपहास किया, जिससे गणेश जी ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम किसी के देखने योग्य नहीं रह जाओगे। देवगणों के अनुरोध पर गणेश जी ने अपने शाप को सिर्फ भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष चतुर्थी तक सीमित कर दिया। गणेश जी ने कहा - केवल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम अदर्शनीय रहोगे, जबकि प्रत्येक मास की कृष्णपक्ष चतुर्थी को तुम्हारा मेरे साथ पूजन होगा। तुम मेरे ललाट पर स्थित रहोगे। इस प्रकार गजानन मस्तक पर चंद्रमा धारण कर भालचंद्र बन गए।

    गणेश जी के भालचंद्र स्वरूप के पीछे छिपे संदेश को समझें। चंद्रमा मन का प्रतिनिधि है। गणपति के मस्तक पर चंद्रमा यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक व्यक्ति का मस्तिष्क जितना शांत होगा, उतनी ही कुशलता के साथ वह अपना काम कर सकेगा। अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दिमाग का ठंडा होना अति आवश्यक है। शांत चित्त से बनाई गई योजना अवश्य सफल होती है।