Baisakhi 2023: आदर्शों के स्मरण का पर्व, पढ़िए बैसाखी पर विशेष
Baisakhi 2023 हिंदू और सिख धर्म में बैसाखी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। बैसाखी पर्व के दिन सिख बड़ी संख्या में एकत्र होते और गुरु के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर कृतार्थ होते थे। आइए जानते हैं बैसाखी पर्व का महत्व।

नई दिल्ली, डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह (सिख दर्शन के अध्येता) | Baisakhi 2023: वैशाख मास के प्रथम दिन को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा सिखों के तृतीय गुरु श्रीगुरु अमरदास जी के काल में आरंभ हुई थी। यह मान्यता भी है कि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यही कारण है कि बैसाखी को हिंदू और सिखों के साझे पर्व के रूप में देखा जाता है। इसका धार्मिक महत्व तब बढ़ गया, जब गुरु गोविंद सिंह जी ने वर्ष 1699 में वैसाखी के ही दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ सजाया। गुरु अमरदास जी के काल से प्रत्येक वर्ष सिख बैसाखी के दिन बड़ी संख्या में एकत्र होते और गुरु के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेकर कृतार्थ होते थे।
इस अवसर पर उनके उल्लास का अन्य कारण होता महीनों के कठिन परिश्रम के फलस्वरूप खेतों में रबी की फसल का पक कर तैयार हो जाना। इस तरह बैसाखी आत्मिक लाभ और भौतिक उपलब्धि का संयुग्म बन गई थी। 1699 की बैसाखी के दिन पूरे भारत से आये लगभग अस्सी हजार सिख आनंदपुर साहिब में एकत्र हुए। पूर्व की भांति सजा दीवान जब समाप्ति की ओर अग्रसर था, गुरु गोविंद सिंह जी अकस्मात उठे और नंगी तेग लहराते हुए बोले कि उन्हें एक शीश चाहिए। सभी स्तब्ध रह गये। उनके पुनः दोहराने पर एक सिख उठा और स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। उसे गुरु साहिब निकट के एक छोटे तंबू में ले गये। इसके बाद गुरु साहिब ने एक के बाद एक चार और शीश मांगे। बाद में पांचों सिखों को गुरु साहिब वापस लाये और उन्हें अमृत पान कराकर पांच ककारों से सुसज्जित किया। इन्हें पंच पियारे कहा गया। गुरु गोविंद सिंह जी ने स्वयं भी और वहां उपस्थित सारी संगत ने अमृत छका।
गुरु गोविंद सिंह जी ने इस अवसर पर सिखों को खालसा नाम दिया, जिसका अभिप्राय था सारे विकारों, अवगुणों से मुक्त होना और सद्गुण धारण कर परमात्मा को समर्पित हो जाना। खालसा एक ऐसा समाज था, जहां न कोई जाति थी, न वर्ण अथवा वर्ग। यह ऐसे धर्म पालकों की संगत थी, जो उपकार करने और दीन-दुखी के हित हेतु त्याग करने के लिये सदैव तत्पर रहे। इसीलिए इसे अकाल पुरख की फौज कहा गया। खालसा होना वस्तुतः श्रेष्ठ आत्मिक अवस्था धारण करना है। खालसा का बल उसकी मानवीय मूल्यों के लिये प्रतिबद्धता है। गुरु गोविंद सिंह जी ने शस्त्रों के उपयोग को अंतिम उपाय कहा। बैसाखी का पर्व उल्लास के साथ ही गुरु गोविंद सिंह द्वारा स्थापित उन आदर्शों के स्मरण का भी है, जो समानता, सदभाव, संयम और प्रेमपरिपूर्ण गौरवशाली समाज का आधार हैं।
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