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    आदि शंकराचार्य जयंती: सांस्कृतिक एकता के पक्षधर, पढ़िए शंकराचार्य जी की जयंती पर विशेष

    By Jagran NewsEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Sun, 23 Apr 2023 03:07 PM (IST)

    आदि शंकराचार्य ने कहा कि यह विराट विश्व ही परमात्मा का स्वरूप है। वही ईश्वर संपूर्ण जीवधारियों वृक्ष वनस्पति जल थल में भावना रूप से विद्यमान है। उसी की चेतना वायु में प्राण बनकर इधर से उधर घूमती है। अग्नि में दाहकता बनकर जलाती है।

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    Adi Shankaracharya Jayanti: पढ़िए जगद्गुरु आदि शंकराचार्य से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

    नई दिल्ली, डा. प्रणव पण्ड्या (प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार) | Adi Shankaracharya Jayanti 2023: सारे देश का विस्तृत भ्रमण करने के साथ-साथ आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत के सारे प्रांतों की विभिन्न प्रतिस्थितियों का भी गहन अध्ययन किया। उन्होंने अनुभव किया कि देश में व्यापक स्तर पर फैली धार्मिक विसंगति एकाकी प्रयत्नों से दूर नहीं की जा सकती हैं। जहां भी लोगों ने उनके प्रवचन सुने और धर्म के नए स्वरूप की झांकी पाई, वहां उन्होंने अपनी मनोवृत्तियां भी बदलीं, पर इसके साथ ही प्रतिक्रियावादी तत्व भी उग्र हो उठे। कई धर्माचार्यों एवं पाखंडियों ने तो उन्हें मरवा डालने तक के षड्यंत्र रचे। शंकराचार्य के प्रस्थान कर जाने के बाद प्रतिक्रियावादी अपना कुचक्र रचते और लोगों को विभ्रमित करते। शंकराचार्य ने अनुभव किया कि कहीं ऐसा न हो कि इस प्रकार देश में धर्म के प्रति रही सही आस्था भी समाप्त हो जाए, इसलिए उन्होंने संगठित प्रयत्नों और सामूहिक रचनात्मक कार्यों को तीव्र करने की आवश्यकता अनुभव की और दूसरी बार का भ्रमण संगठन की दृष्टि से किया। जिस समय वे प्रयाग में थे, उस समय एक दिन वे विचारों में डूबे हुए चले जा रहे थे कि सामने से आ रहे एक चांडाल ने उन्हें छू लिया।

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    शंकराचार्य ब्राह्मण कुल में जन्मे थे और छुआछूत की परंपरागत परिस्थितियों में पले थे। धर्म प्रचार करने और लोगों के कल्याण की बातें करने पर भी उनमें कुछ पुराने संस्कार कहीं छिपे थे। उन्हें अछूत के स्पर्श से बड़ा क्रोध आया। उसे वहीं फटकारने लगे, तो उस चांडाल ने हंसकर कहा- साधु प्रवर, आप तो कहते हैं, वह ब्रह्म ही सर्वभूत प्राणियों में समाया हुआ है। वह अलग-अलग रूपों में क्रियाशील होने पर भी एक है, उसके गुण, कर्म और स्वभाव में अंतर नहीं आता। फिर भी आप मनुष्य-मनुष्य में भेद करते हैं, छूत-अछूत मानते हैं। क्या यही आपका धर्म है?

    आदिगुरु शंकराचार्य ने चांडाल की बातों पर गंभीरता से विचार किया, तो उन्हें अपनी भूल ज्ञात हुई। उन्होंने उससे क्षमा मांगी। आदिगुरु शंकराचार्य को उस दिन व्यावहारिक अद्वैत का बोध हुआ। उन्होंने 'मनीषा पंचकम्' इस घटना के बाद ही लिखा, जिसमें उन्होंने ब्रह्म के विराट स्वरूप का दिग्दर्शन कराया है और लिखा है - यह विराट विश्व ही परमात्मा का स्वरूप है। वही ईश्वर संपूर्ण जीवधारियों, वृक्ष, वनस्पति, जल, थल में भावना रूप से विद्यमान है। उसी की चेतना वायु में प्राण बनकर इधर से उधर घूमती है। अग्नि में दाहकता बनकर जलाती है। जल में विद्युत बनकर प्रकाश और जीवन देती है। अनंतर ग्रह नक्षत्रों और लोक लोकांतरों में वही चेतना सर्वत्र व्याप्त, सत् और चेतनशील है। उस निराकार विराट ब्रह्म का ध्यान करने में मनुष्य की अंतर्वृत्तियां विकसित होती है और विशाल बनती है। उसी ब्रह्म की ज्ञान आराधना करने से मनुष्य के कष्ट दूर होते हैं और जीवन लक्ष्य की पूर्ति होती है।

    शंकराचार्य ने उत्तर में बद्रिकाश्रम, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी व पश्चिम में द्वारिकाधाम में चार धर्म पीठों की स्थापना भारतवर्ष को एक धागे में बांधने के लिए की। तब से लेकर अब तक ये चारों पीठ धार्मिक मेखला का काम कर रहे हैं। उन्मुक्त आत्माओं ने स्वयं आकर भारत वर्ष की अधार्मिकता को समय-समय पर नष्ट किया और सत्य धर्म की प्रतिष्ठा की। उन्होंने अपने प्रयाण से पूर्व यह व्यवस्था भी की, जिससे उनके न रहने पर भी धार्मिक शक्तियों का प्रभाव और प्रसार बढ़ता रहे। आदिगुरु शंकराचार्य जी ने अपना जीवन लोगों की मानसिक समीक्षा में बिताया था।

    संसार में बुरे लोग हैं, पर भलों की संख्या उनसे अधिक है। उन्होंने कुछ ऐसे उत्कृष्ट, निष्ठावान और त्यागपूत शिष्य भी ढूंढ़ कर संवारे थे, जो उनके न रहने पर वैदिक धर्म की पताका फहाराये रहते और फिर इस परंपरा को कालों तक जीवित बनाए रहते। तोटकाचार्य को उत्तर दिशा में शारदामठ और सुरेश्वर को दक्षिण दिशा में शृंगेरी मठ का भार सौंपकर उन्होंने एक दीर्घ निश्चिंतता अनुभव की। आदिगुरु के त्याग, तपस्या और साधना का ही प्रभाव है कि यह परंपरा आज भी चली आ रही है। ज्योतिपीठों में अभी तक उन्हीं लोगों को उत्तरदायी नियुक्त किया जाता है, जिनमें धार्मिक तत्व, विश्व कल्याण की प्रतिभा समासीन होती हो। यह पीठें भारतीयों सहित देश-विदेश के लोगों में आध्यात्मिक आस्थाओं, श्रद्धा और निष्ठा को जीवित रखने में बड़ा योगदान दिया है।