Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कर्तव्य के पालन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है

    By Edited By:
    Updated: Mon, 12 May 2014 11:43 AM (IST)

    कर्तव्य के पालन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। प्राय: हमें कर्तव्य मार्ग पर दृढ़ रहने की शिक्षा अपने अग्रजों, शिक्षकों व मनीषियों से मिलती है, किंतु हम अपने कर्तव्यों को किस रूप में लेते हैं और किस हद तक अंजाम देते हैं, यह बात हम पर निर्भर करती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कर्तव्य पालन की परिभाषा बीतते वक्त के साथ दूषित हो गई हो और

    कर्तव्य के पालन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है

    कर्तव्य के पालन का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। प्राय: हमें कर्तव्य मार्ग पर दृढ़ रहने की शिक्षा अपने अग्रजों, शिक्षकों व मनीषियों से मिलती है, किंतु हम अपने कर्तव्यों को किस रूप में लेते हैं और किस हद तक अंजाम देते हैं, यह बात हम पर निर्भर करती है।
    कहीं ऐसा तो नहीं कि कर्तव्य पालन की परिभाषा बीतते वक्त के साथ दूषित हो गई हो और हम अपने कर्तव्यों को अहोभाव से न लेकर उन्हें भार स्वरूप ले रहे हों। कारण यह कि कर्तव्य अगर भार स्वरूप है तो निश्चित रूप से वह थकाने वाला होगा और उसमें हमारी श्रद्धा व आस्था का कोई स्थान नहीं होगा। वहीं अहो भाव से निभाया गया कर्तव्य आनंददायक व खेल की तरह स्फूर्तिदायक साबित होगा। कदाचित यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में बारंबार सारी चिंताओं को छोड़कर, आसक्तिरहित होकर कर्तव्य पालन करने की शिक्षा अजरुन को देते हैं, किंतु विपक्ष में बंधु-बांधवों को खड़ा देखकर अर्जुन पर मोह पाश कसता जाता है और वह प्रश्न पर प्रश्न उठाते चले जाते हैं।
    महाराष्ट्र में कृष्ण का एक मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अपने एक भक्त पर श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर उससे मिलने पहुंचे। उस समय वह कृष्ण भक्त मातृ सेवा में संलग्न था। भक्त ने समीप पड़ी ईंट की ओर संकेत कर कृष्ण से कहा कि कृपा कर थोड़ी देर के लिए इसी ईंट पर बैठ जाएं। मां सो जाएंगी तब फिर आपसे मिलता हूं।
    इस प्रकार भक्त ने मातृ सेवा में भगवान कृष्ण के आगमन को भी स्वीकार नहीं किया और वह तब उठे जब मां सो गईं। कहते हैं कि उस मंदिर में कृष्ण की मूर्ति आज भी ईंट पर विराजमान है। आशय यह कि अगर हम अपने कर्तव्य की पूर्ति परमात्मा को धन्यवाद देते हुए अहो भाव से करें कि उसने हमें एक अवसर दिया है तो कर्तव्य पालन हमें एक नए आनंद व स्फूर्ति से परिपूर्ण कर देगा। जबकि भार स्वरूप स्वीकार किया गया कर्तव्य हमें शारीरिक व मानसिक रूप से थका देगा। दूसरी बात यह कि अहोभाव से किया गया कर्तव्य पालन हमें फलाकांक्षा रूपी दुख से दूर रखेगा, जबकि दूसरी सूरत में अगर हम बच्चों की परवरिश भी फलाकांक्षा से कर रहे हैं तो निश्चित रूप से भविष्य में दुख ही हमारे हाथ लगेगा। इसलिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करना है, इस संदर्भ में आत्म-चिंतन करना चाहिए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
    comedy show banner
    comedy show banner