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    स्वामी हरिदास

    By Edited By:
    Updated: Thu, 27 Sep 2012 11:36 AM (IST)

    स्वामी हरिदासजी का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी (श्रीराधाष्टमी) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। वे बचपन से ही एकांत-प्रिय थे। वे राधा-कृष्ण की भक्ति में डूबे रहते थे। हरिदासजी में संगीत की अपूर्व प्रतिभा थी।

    स्वामी हरिदासजी का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी (श्रीराधाष्टमी) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। वे बचपन से ही एकांत-प्रिय थे। वे राधा-कृष्ण की भक्ति में डूबे रहते थे। हरिदासजी में संगीत की अपूर्व प्रतिभा थी। विक्रम संवत 1560 में 25 वर्ष की अवस्था में श्रीहरिदास जी वृंदावन पहुंचे और उन्होंने निधिवन को अपनी तपस्थली बनाया। हरिदास जी निधिवन में सदा श्यामा-कुंजबिहारी के ध्यान तथा उनके भजन में तल्लीन रहते थे। स्वामीजी ने प्रिया-प्रियतम की युगल छवि श्रीबांकेबिहारीजी महाराज के रूप में प्रतिष्ठित की। हरिदासजी के ये ठाकुरजी आज असंख्य भक्तों की आस्था में बसे हैं। स्वामी हरिदास को वैष्णव श्रीराधा का अवतार मानते हैं। उनका संगीत उनके अपने आराध्य की उपासना को समर्पित था, किसी राजा-महाराजा को सुनाने के लिए नहीं। कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर का संगीत सुनाने का आग्रह उन्होंने ठुकरा दिया था, तब अकबर ने छिपकर उनका संगीत सुना था। विश्व-विख्यात संगीतज्ञ तानसेन उनके शिष्य थे।

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    स्वामी हरिदास जी सखी-संप्रदाय के प्रवर्तक थे। उनके द्वारा निकुंजोपासना के रूप में श्यामा-कुंजबिहारी की उपासना-सेवा की पद्धति विकसित हुई। इसमें सखी-भाव है। उपासक प्रभु से अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता, बल्कि उसके समस्त कार्य अपने आराध्य को सुख प्रदान करने के लिए ही होते हैं। राधाष्टमी के दिन स्वामी हरिदास का जन्मोत्सव वृंदावन में धूमधाम से मनाया जाता है। देश के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ निधिवन में स्वामीजी की समाधि के समक्ष अपना संगीत प्रस्तुत करते हैं।

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