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    दृढ़ प्रतिज्ञा से देवव्रत बने भीष्म

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    Updated: Sat, 14 Apr 2012 05:43 PM (IST)

    भीष्म पितामह को महाभारत में पितृभक्त, दृढ़प्रतिज्ञ, महावीर, जितेन्द्रिय, धर्मात्मा और प्रकांड विद्वान के रूप में चित्रित किया गया है। जानिए देवव्रत के भीष्म बनने की क्या है कथा..?

    भीष्म प्रसिद्ध कुरुवंशी महाराज शांतनु के पुत्र थे। भगवती गंगा उनकी माता थीं। उनके जन्म के पीछे एक कथा है। गंगाजी ने शांतनु से विवाह के लिए यह वचन लिया कि वे कभी भी उनके किसी कार्य-व्यवहार पर कोई रोक-टोक नहीं करेंगे। शादी के बाद उनके सात पुत्र हुए, पर उन सभी को गंगाजी ने अपनी धारा में प्रवाहित कर दिया। आठवें बालक को जब गंगा जी प्रवाहित करने चलीं, तब शांतनु संयम न रख सके। उनके रोकने से वचन भंग हो गया और गंगा जी उन्हें छोड़कर चली गईं। बच गया आठवां पुत्र देवव्रत ही भीष्म बना।

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    पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाराज शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को अपना युवराज घोषित कर दिया था। फिर शांतनु ने कैवर्तराज की पुत्री सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन कैवर्तराज ने यह शर्त रख दी कि उनकी पुत्री के गर्भ से उत्पन्न पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा। उन्होंने कैवर्तराज की शर्त नहीं मानी, किंतु वे सत्यवती के प्रति अपनी आसक्ति से मुक्त न हो सके। इस कारण उदास रहने लगे। देवव्रत को यह जब पता चला, तब वे कैवर्तराज के पास अपने पिता के विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। युवराज देवव्रत ने कैवर्तराज के समक्ष प्रतिज्ञापूर्वक कहा, मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि तुम्हारी कन्या से जो पुत्र पैदा होगा, वही राज्य का अधिकारी होगा। मैं शपथ लेता हूं।

    कैवर्तराज को इस वचन से संतोष नहीं हुआ। उन्होंने देवव्रत से कहा, मुझे आप पर तो विश्वास है, किंतु यह शंका है कि आगे आपकी संतान सत्यवती के पुत्र को सत्ता से वंचित न कर दे? तब देवव्रत ने कहा, मुझे पुत्र न हो, इसके लिए मैं आजन्म ब्रहृमचारी रहने की प्रतिज्ञा करता हूं। देवव्रत की ऐसी भीषण प्रतिज्ञा सुनकर सभी रोमांचित हो उठे। देवताओं ने उन पर पुष्पों की वर्षा करते हुए कहा, यह भीष्म हैं, यह भीष्म हैं। दृढ़ प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत भीष्म कहलाए।

    महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की थी, किंतु भक्तराज भीष्म ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि उन्हें पांडवों की रक्षा हेतु शस्त्र उठाने के लिए विवश होना पड़ा।। भीष्म का संकल्प पूर्ण हुआ और भक्त की खातिर भगवान ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी। ग्रंथों के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को भीष्म का जन्म हुआ था और अंत समय में शरशय्या पर लेटे-लेटे सूर्य के उत्तरायण होने पर माघ मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को अपनी इच्छानुसार ही उन्होंने शरीर त्याग दिया।

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