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    जिनके रोम-रोम में थीं राधा

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    Updated: Thu, 12 Apr 2012 05:05 PM (IST)

    श्री राधा बाबा का जन्म बिहार के गया जिले में आने वाले फखरपुर गांव में 1913 के पौष शुक्ल नवमी के दिन हुआ था। उनके बचपन का नाम श्रीचक्रधर मिश्र था। विद्यार्थी जीवन में सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे। नेतृत्व की अद्भुत क्षमता रखने वाले चक्रधर ने आठवीं कक्षा के बाद भारत को अंग्रेजी-पाश से मुक्त कराने के लिए राजनैतिक कार्यक्रमों में भाग लेना आरंभ कर दिया। हालांकि इस क्रम में उन्हें दो बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी।

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    जेल से बाहर आने के बाद स्वाध्याय करते-करते उनका झुकाव वेदांत की ओर होने लगा और वह शांकर मतानुयायी हो गए। जब वह इंटर कक्षा के विद्यार्थी थे, तभी शारदीय पूर्णिमा के दिन संन्यास ले लिया। अपनी ब्राšाी स्थिति की परीक्षा लेने के लिए वह कलकत्ते में गंगा के किनारे कुष्ठ रोगियों के बीच बैठने लगे।

    एक बार कलकत्ते में उनकी मुलाकात श्रीरामसुखदासजी महाराज से हुई और उनके माध्यम से वह सेठ श्री जयदयाल जी से मिले। उनकी निष्ठा एकमात्र निराकार में थी। जयदयाल जी के परामर्श से बाबा गोरखपुर आकर गीताप्रेस और फिर गीतावाटिका गए। गोरखपुर की गीतावाटिका में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ स्वामीजी रहा करते थे। स्वामी जी आगे चलकर श्री राधा बाबा के नाम से विख्यात हुए। कहते हैं कि बाबा को अद्वैत तत्व की साधना करते हुए सिद्धि मिली।

    श्रीराधा बाबा के नयनों में, प्राणों में, रोम-रोम में श्री राधारानी बसी हुई थीं। उनका मन नित्य वृन्दावनी-लीला में रमा रहता था। श्रीराधामाधव की प्रीति के साकार स्वरूप बाबा सदा नि:स्पृह भाव से जनसेवा में लीन रहते थे। गीतावाटिका में विख्यात श्रीराधाष्टमी महोत्सव का शुभारंभ राधाबाबा ने ही किया। उन्होंने श्रीकृष्णलीला चिंतन,जय-जय प्रियतम,प्रेम सत्संग सुधा माला आदि शीर्षकों से साहित्य का प्रणयन भी किया। बाबा अपनी साधनावस्था में प्रतिदिन तीन लाख नाम जप किया करते थे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे-इसकी 64 माला जप करने से एक लाख नाम जप होता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक बार श्रीमद्भागवतमहापुराण का अखंड पाठ किया। राधा बाबा 13 अक्टूबर, 1992 को सदा के लिए अंतर्हित हो गए। बाबा का सुंदर एवं प्रेरक श्रीविग्रह गीतावाटिका के नेह-निकुंज में प्रतिष्ठित है।

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