Yogini Ekadashi 2025: योगिनी एकादशी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, रिश्ते में आएगी मिठास
सनातन धर्म में योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi 2025) का विशेष महत्व है जो आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है। इस साल यह 21 जून को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं इस दिन श्री राधा कृष्ण अष्टकम स्तोत्र का पाठ करना महत्वपूर्ण माना जाता है तो आइए पढ़ते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। साल भर में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। योगिनी एकादशी उनमें से एक है। पंचांग के अनुसार, यह आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में आती है। इस साल यह (Yogini Ekadashi 2025) 21 जून, 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।
इस शुभ दिन पर भक्त व्रत रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं, इस दिन ''श्री राधा कृष्ण अष्टकम स्तोत्र'' का पाठ करने का बड़ा महत्व है, जो इस प्रकार है।
।।श्री राधा कृष्ण अष्टकम।। (Shri Radha Krishna Stotra)
चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं ।
हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं ॥
भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं ।
मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं ॥
सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं ।
वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं ॥
मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं ।
नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं ॥
प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं ।
सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं ॥
दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं ।
इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं ॥
मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं ।
धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं ॥
सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं ।
श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं ॥
।।श्री राधा कृष्ण स्तोत्र।।
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥
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