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    योग: कर्मसु कौशलम् - योग से आती है हमारे कर्मों में कुशलता और हम बन जाते हैं आत्मनिर्भर

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 20 Jun 2022 05:01 PM (IST)

    Yoga Day 2022 योग न केवल हमारा स्वाभिमान बढ़ाता है बल्कि उपयोगी व आत्मनिर्भर बनाकर हमें स्वावलंबन की सनातन परंपरा से भी जोड़ता है। तभी तो कहा गया है कि योग कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्मों की कुशलता ही योग है...

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    भारत में योग एक जीवन पद्धति है, दर्शन है और संस्कृति भी है।

    स्वामी चिदानंद सरस्वती। ऋषियों की हजारों वर्षों तक की गई अथक तपस्या का परिणाम है योग। हमारे ऋषि-मुनियों ने योग को 'समत्वम् योग उच्यते' अर्थात सुख और दुख, सम और विषम, दोनों परिस्थितियों में समान रहने के रूप में परिभाषित किया है। वास्तव में योग जब जीवन में उतरता है तो जीव पर सुख-दुख अपना नकारात्मक प्रभाव नहीं डाल पाते। इसलिए कहा गया है कि योग करने का नहीं, बल्कि जीने का नाम है। हमारे ऋषियों ने जीवन को धैर्य और संयम युक्त बनाने के लिए योग को प्रमुख माध्यम बनाया था। वर्तमान समय में संपूर्ण मानवता की रक्षा के लिये धैर्य, संयम और करुणा जैसे दिव्य आभूषणों की ही आवश्यकता है, जो केवल योगमय जीवन पद्धति में निहित हैं। भारत में योग एक जीवन पद्धति है, दर्शन है और संस्कृति भी है। इसके माध्यम से आध्यात्मिक सोपानों को प्राप्त किया जा सकता है।

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    शरीर, मन व भावनाओं को संतुलित करता है योग : योग का तात्पर्य जोडऩा व एकीकरण है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन, आत्मा का परमात्मा से मिलन और व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो योग शरीर, मन व भावनाओं को संतुलित व समरेखीय बनाने का एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। योग अंतर्मुखी और बहिर्मुखी, दोनों ही स्थितियों में संतुलन स्थापित करता है। शरीर, आत्मा और मस्तिष्क का सार्वभौमिक चेतना से जुडऩा ही योग है, जो हमें शिक्षा देता है और इसी में संपूर्ण मानवता की सुरक्षा निहित है।

    व्यवहार कुशलता व कार्यक्षमता को बढ़ाता है योग : वर्तमान समय में पृथ्वी पर बढ़ते प्रदूषण, प्रदूषित होते वायु, जल और बढ़ते वैश्विक तापमान की समस्याओं का समाधान केवल प्रकृतिमय जीवन पद्धति और सतत एवं सुरक्षित विकास में निहित है। यह संदेश योग के माध्यम से जीवन में आता है। प्रभु श्रीराम, श्रीकृष्ण, योगी शिव, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, गुरु नानक देव सभी ने प्रकृति संरक्षण का दिव्य संदेश दिया। बताया कि योग को आत्मसात कर ही हम प्रकृतिमय जीवन जी सकते हैं। योग असीम ऊर्जा और उत्साह का संचार कर हमारी व्यवहारकुशलता व कार्यक्षमता को बढ़ाता है। इसीलिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहते हैं, 'योग: कर्मसु कौशलम्'।

    जीवन पद्धति है योग : वैदिक संहिताओं में उल्लेख है कि हमारे सप्त ऋषियों में से एक महान ऋषि अगस्त्य मुनि ने भारत में योग को जनसामान्य के लिए सहज एवं सर्वसुलभ बनाने में अद्भुत योगदान दिया। ईसा पूर्व दूसरी सदी में महर्षि पतंजलि ने 'पतंजलि योग सूत्र' नामक दिव्य कृति के माध्यम से सभी का योग से परिचय कराया। भारतीय परंपरा में तो योग एक जीवन पद्धति थी, इसीलिए हमारे ऋषि प्रकृति के सान्निध्य में रहते थे।

    मिलती है शांति : वर्तमान समय में अगर हम वैश्विक स्तर पर देखें तो हर व्यक्ति को शांति की तलाश है और योग से मानसिक शांति के साथ शांतिपूर्ण वातावरण का भी निर्माण किया जा सकता है। आज हम चारों ओर व्यक्तिगत, सामूहिक और वैश्विक स्तर पर बढ़ते संघर्ष को देख रहे हैं। यह मानसिक अशांति और बदलती जीवन शैली के कारण भी उत्पन्न हो सकता है। योग में शारीरिक, मानसिक, वैचारिक आदि सभी समस्याओं का समाधान निहित है। जब हम योग से जुड़ते हैं तो न केवल शरीर, आत्मा और भावनाओं से जुड़ते हैं, बल्कि विराट ब्रह्मांड और विराट सत्ता से भी जुड़ जाते हैं। फिर हम न केवल अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन का सामना भी कर सकते हैं। इसलिए जीवन का एक ही मंत्र है, 'करें योग, रहें निरोग'।

    शांति और योग है हमारी शक्ति : वर्तमान समय में पूरा विश्व शक्ति की तलाश में है, परंतु भारत ने हमेशा से शांति और योग की शक्ति पर विश्वास किया है। भारत के पास सदियों से योग रूपी शक्ति है, जिसके बल पर वह शांति, समरसता और सद्भाव का संदेश प्रसारित कर रहा है। भारत अपनी यौगिक, बौद्धिक व सांस्कृतिक शक्ति अर्थात् 'साफ्ट पावर' के बल पर जीते हुए पूरे विश्व को सौहार्द का संदेश दे रहा है। भारत के पास सदियों से योग रूपी 'साफ्ट पावर', 'स्मार्ट पावर' और 'हेल्थ पावर' है, जिसके बल पर हम पूरे विश्व को एक दिशा प्रदान कर सकते हैं। हमारा 'साफ्ट पावर' भारतीय संस्कृति, सांस्कृतिक गतिविधि, अध्यात्म और योग जैसे अमूर्त दर्शन में निहित है। आने वाली पीढिय़ां भी इस 'साफ्ट पावर' के साथ अपना विकास करती रहें तो वास्तव में हमने जो खोया है, उसे दोबारा प्राप्त कर सकते हैं।

    अहिंसा व योग भारतीय संस्कृति की धरोहर : हमारे पास महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी द्वारा दिया गया अहिंसा रूपी दिव्य हथियार है, जिस पर हमें गर्व है। वर्तमान समय में भी अहिंसा और योग भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा हैं, जिन्हें विश्व के विभिन्न देशों तक पहुंचाना है। भारत की आध्यात्मिकता, योग, दर्शन, संस्कृति ने वैश्विक समुदाय को आकर्षित किया है।

    उपयोगी, उद्योगी और सहयोगी बनाता है योग : अंतिम बात, योग न केवल हमें योगी बनाता है, बल्कि हमें उपयोगी, उद्योगी और सहयोगी भी बनाता है। मानवता की रक्षा के लिए इन्हीं तीन दिव्य सूत्रों की जरूरत है। भारत के पास जो विरासत, दर्शन और संस्कृति है, वह वसुधैव कुटुंबकम् की संस्कृति है, जिसमें विश्व एक परिवार की दिव्य भावना निहित है। योग के माध्यम से हर योगी इस दिव्य भावना के साथ जिये और दूसरों को भी जीने दे। हम सभी मिलकर सुरक्षित, स्वस्थ एवं निष्पक्ष दुनिया का निर्माण करें, यही आने वाली पीढिय़ों और संपूर्ण मानवता के लिए सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा। योग, मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में ही शामिल नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवन शैली और चिंतन शैली में भी बना रहे। इसलिए योग करें, रोज करें, मौज करें।

    [अध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश]