या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
शक्ति सभी में विद्यमान है, लेकिन शक्ति का सही उपयोग हममें दैवी गुण पैदा करता है और दुरुपयोग आसुरी बनाता है। हमें अपने भीतर के सद्गुणों को निखार कर शक्ति का सदुपयोग सीखना होगा...
शक्ति सभी में विद्यमान है, लेकिन शक्ति का सही उपयोग हममें दैवी गुण पैदा करता है और दुरुपयोग आसुरी बनाता है। हमें अपने भीतर के सद्गुणों को निखार कर शक्ति का सदुपयोग सीखना होगा...
एक बार एक व्यक्ति ने देखा कि महावत ने कुछ हाथी पतली और कमजोर रस्सी से अपने दरवाजे पर बांध रखे थे, उसने महावत से पूछा कि इतनी कमजोर रस्सी को तोड़कर ये क्यों नहीं भाग जाते? महावत ने उत्तर दिया कि मैंने इन्हें बचपन से पाला है। तब वे इस रस्सी को नहीं तोड़ सकते थे। तब उन्होंने कोशिश की, लेकिन नहीं तोड़ सके। इसलिए इनके दिमाग में यह बात घर कर गई है कि वे रस्सी को तोड़ नहीं सकते। इसलिए वे अब भी
प्रयास नहीं करते।
हमारे अंदर शक्ति होते हुए भी जब तक हम मानसिक रूप से उसे स्वीकार नहीं करते, तब तक शक्ति का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है। कर्मप्रधान जीवन में यदि प्रयास नहीं किया गया, तो सब कुछ व्यर्थ है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा अर्थात शक्ति की उपासना का यही अर्थ है कि हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और उसे सही दिशा में कार्यान्वित करें। तभी तो हम नवरात्र पर वंदना करते हैं -
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
यह अपने भीतर शक्ति के रूप में स्थित देवी की आराधना है। हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना होगा और उसका सदुपयोग करना होगा। शक्ति अथवा ऊर्जा प्रकृति के रूप में (बाहरी और हमारे भीतर की प्रकृति),
उल्लास के रूप में, क्रियाशीलता के रूप में, प्रसन्नता आदि के रूप में अभिव्यक्त होती है। वासंतिक नवरात्र का पदार्पण भी ऐसे समय में होता है, जब प्रकृति नई ऊर्जा से भरी होती है। प्राणियों में भी यह ऊर्जा स्फूर्ति, उल्लास और क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होती है। लेकिन यदि हम उसे सकारात्मक रूप में क्रियान्वित नहीं कर
पाते, तो शक्ति होने के बावजूद हाथियों की तरह निष्क्रिय होकर खूंटे से बंधे रहते हैं या फिर उस ऊर्जा को नकारात्मकता की ओर मोड़ देते हैं।
जिस शक्ति का उपयो ग हम मदद में या सृजनात्मक कामों में कर सकते हैं, उसका उपयोग विध्वंसक कार्यों में करने लगते हैं। शक्ति के प्रवाह को सकारात्मकता की ओर लाने के लिए नौ दिन शक्ति की आराधना का प्रावधान किया गया होगा।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार, मां दुर्गा समस्त प्राणियो में चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, शांति श्रद्धा, कांति, तुष्टि, दया आदि अनेक रूपों में स्थित हैं। अपने भीतर स्थित इन देवियों को जगाना हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है। भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना कर बलशाली रावण पर विजय पाई थी। जबकि ‘देवी पुराण’ में
उल्लेख है कि रावण शिव के साथ-साथ शक्ति का भी आराधक था। उसने मां दुर्गा से बलशाली होने का वरदान पा रखा था। लेकिन शक्ति ने राम का साथ दिया, क्योंकि रावण अपने भीतर सद्गुण रूपी देवियों को जगा नहीं पाया। तुष्टि, दया, शांति आदि के अभाव में उसका अहंकार प्रबल हो गया। इसलिए देवी की आराधना का एक अर्थ यह भी है कि आप एक ऐसे इंसान बनें, जिसमें शक्ति के साथ- साथ करुणा, दया, चेतना, बुद्धि, तुष्टि
आदि गुण भी हों। देवी के रूपों में मां दुर्गा को राक्षसों से संघर्ष करते हुए दिखाया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि हम कठिनाइयों (जो वास्तव में राक्षस जैसी ही प्रतीत होती हैं) से हिम्मत हारने के बजाय उनसे संघर्ष करें। नवरात्र तीन शक्तियों महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की उपासना का पर्व भी माना जाता है। ये भी हमारी तीन शक्तियां हैं, जिन्हें इच्छाशक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति कह सकते हैं।
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