Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नवरात्रों में इस तरह नियम पूर्वक प्रतिदिन पूजा करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होती है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Mon, 03 Apr 2017 10:27 AM (IST)

    यदि आपसे माँ के पूजन में कोई त्रुटि हो गयी है तो अपनी इस भूल के लिए दुर्गा माता से क्षमा मांगे। क्षमा-याचना आपकी दुर्गा सप्शती की पुस्तक में मिल जाएगी।

    नवरात्रों में इस तरह नियम पूर्वक प्रतिदिन पूजा करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होती है

     इस तरह की मूरत बनवाकर नियम पूर्वक प्रतिदिन पूजा करने से माँ शीघ्र प्रसन्न होती है| माँ दुर्गा की मूर्ति का रूप, माँ की मूरत मिट्टी , अष्ट धातु , सोना या चाँदी की बनवाए जिसमे दुर्गा माँ सिंह के कंधे पर सवार हो | माँ के अष्ट भुजाये हो जिसमे माँ ने क्रमशः गदा , खडग , त्रिशूल , बाण , धनुष , कमल ,खेट (ढाल), और मुद्गर धारण करवाए | इस मूरत के मस्तक पर चंद्रमा का चिन्ह हो , उसके त्रिनेत्र हो | माँ को लाल वस्त्र पहनाये | माँ के महिषासुर का वध करने का भी इसमे रूप हो | 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सामग्री

    देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, तांबे का लोटा, जल का कलश, दूध, देव मूर्ति को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र व आभूषण। प्रसाद के लिए फल, दूध, मिठाई, पंचामृत( दूध, दही, घी, शहद, शक्कर ), सूखे मेवे, शक्कर, पान, दक्षिणा।गुड़हल के फूल, नारियल। चावल, कुमकुम, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, अष्टगंध।

     पूजा करने की विधि

    दुर्गा जी आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। इनके नौ अन्य रूप है जिनकी पूजा नवरात्रों में की जाती है। माना जाता है कि राक्षसों का संहार करने के लिए देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया था।  

    प्रथमपूजनीय गणपति गजानन गणेश हिन्दू धर्म के लोकप्रिय देव हैं। इनका वर्णन समस्त पुराणों में सुखदाता, मंगलकारी और मनोवांछित फल देने वाले देव के रूप में किया गया है। भगवान गणेश को वरदान प्राप्त है की किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पुजा अनिवार्य है, बिना श्री गणेश की पूजा के किसी भी यज्ञ आदि पवित्र कार्य को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता| पूजन शुरू करने से पहले सकंल्प लें। संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें। अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें। सबसे पहले जिस मूर्ति में माता दुर्गा की पूजा की जानी है। उस मूर्ति में माता दुर्गा का आवाहन करें। माता दुर्गा को आसन दें। अब माता दुर्गा को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें, तिलक करें। तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें।  अब धूप व दीप अर्पित करें। माता दुर्गा की पूजन में दूर्वा को अर्पित नहीं करें। लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें। 11 या 21 चावल अर्पित करें। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। माता दुर्गा की आराधना के समय ‘‘ऊँ दुं दुर्गायै नमः'' मंत्र का जप करते रहें।

    माता दुर्गा की पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग जरूर लगाएं। माता दुर्गा की प्रतिमा के सामने नारियल अर्पित करें। 10-15 मिनिट के बाद नारियल को फोड़े। अब प्रसाद देवी को अर्पित कर भक्तों में बांटें।

    क्षमा-प्रार्थना

      

    यदि आपसे माँ के पूजन में कोई त्रुटि हो गयी है या आप किसी कार्य को करना भूल गए है तो अपनी इस भूल के लिए दुर्गा माता से क्षमा मांगे। क्षमा-याचना आपकी दुर्गा सप्शती की पुस्तक में मिल जाएगी।

    क्षमा-प्रार्थना

    अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥1॥

    आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥2॥

    मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥3॥

    अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्। यां गतिं समवापनेति न तां ब्रह्मादय: सुरा:॥4॥

    सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके। इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु॥5॥

    अज्ञानाद्विस्मृतेभ्र्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्। तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥6॥

    कामेश्वरि जगन्मात: सच्चिदानन्दविग्रहे। गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥7॥

    गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥8॥