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    आत्मज्ञान की अनुभूति होने से जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी व्यक्ति रह सकता है सुखी और शांत

    By Priyanka SinghEdited By:
    Updated: Wed, 27 Jul 2022 01:18 PM (IST)

    आत्मबोध से ही व्यक्ति व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन स्थापित कर सुख शांति एवं समृद्धि प्राप्त करता है। आत्मज्ञान की अनुभूति ही परमात्मिक आनंद का गंतव्य है। यही वह अमृत है जिसे पाने के उपरांत कुछ पाना शेष नहीं रह जाता।

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    आत्मबोध से ही व्यक्ति जीवन में संतुलन स्थापित कर सुख, शांति एवं समृद्धि प्राप्त करता है।

    नई दिल्ली, कैलाश मांजू बिश्नोई। जीवन-संपदा का महत्व समझने और इसे सार्थक करने के लिए आत्मबोध का होना आवश्यक है। आत्मबोध का शाब्दिक अर्थ है स्वयं की समझ। दूसरे शब्दों में कहें तो अपनी भावनाओं, अनुभूतियों, दायित्वों, क्षमताओं और कमजोरियों आदि का स्पष्ट ज्ञान। मनुष्य ही ऐसा प्राणी हैं जो आत्मज्ञान द्वारा नर से नारायण की अनुभूति कर सकता है। आत्मज्ञान की अनुभूति होने से जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी सुख एवं शांति का अनुभव होता है। आत्मज्ञानी सदैव राग-द्वेष से नि:स्पृह रहता है। सर्वत्र संतुष्ट रहता है। स्वयं में परिपूर्ण रहता है। आत्मज्ञान से मनुष्य निर्भय होता है।

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    आत्मबोध से ही व्यक्ति व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन स्थापित कर सुख, शांति एवं समृद्धि प्राप्त करता है। आत्मज्ञान की अनुभूति ही परमात्मिक आनंद का गंतव्य है। यही वह अमृत है, जिसे पाने के उपरांत कुछ पाना शेष नहीं रह जाता। कहा भी जाता है ज्ञान श्रेष्ठ है, लेकिन आत्मज्ञान उससे भी श्रेष्ठ है। स्वयं को जान लेने के बाद ही अन्य प्राप्त ज्ञान का सदुपयोग हो पाता है। अन्यथा अज्ञान के हाथों से होकर आया हुआ समस्त ज्ञान भी बहुधा आत्मघाती सिद्ध होता है।

    मनुष्य के भीतर आत्मज्ञान को आलोकित करने के लिए एक सच्चा गुरु होना जरूरी है। गुरु ही आत्मज्ञान की प्रेरणा प्रदान कर उसका मार्ग दिखाता है। आत्मबोध कराना गुरु का गुरुतर दायित्व है। सच्चा गुरु वही है जो व्यक्ति में आत्मज्ञान जागृत कर देता है। सही राह पर चलने की क्षमता, सामथ्र्य और दिशा देता है। इसके अतिरिक्त योग आत्मबोध की यात्र का सरल और सहज मार्ग है। योग मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता को बढ़ाकर आत्मज्ञान से साक्षात्कार कराने में सक्षम होता है। संप्रति विज्ञान ने तमाम मानवीय जिज्ञासाओं की पूर्ति की है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है। जहां विज्ञान की सीमा समाप्त होती है, वहीं आत्मज्ञान का प्रभाव क्षेत्र आरंभ होता है।

    Pic credit- freepik