सोमवार विशेष: भगवान शिव इन दो वजहों से अपने शरीर पर लगाते हैं भस्म, जानें क्या है भस्म
भगवान शिव स्वयं काल के देवता हैं तभी तो हम उनको महाकाल कहते हैं वह श्मशान वासी भी हैं। वह अपने शरीर पर शवों को जलाने के बाद बची राख को भी अपने शरीर पर धारण करते हैं।
देवों के देव महादेव मोक्ष के देवता हैं। उनकी आराधना करके मनुष्य अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करता ही है, साथ ही साथ उनकी कृपा से वह संसार रुपी भव सागर को भी पार कर जाता है। शरीर पर भस्म और माथे पर त्रिपुंड धारण करने वाले भगवान शिव स्वयं महाकाल हैं। सोमवार को उनकी आराधना करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
भगवान शिव सभी देवताओं में सबसे अलग और विरले हैं। उनकी वेश-भूषा, गले में सर्प, मस्तक पर चंद्रमा, जटा में गंगा, हाथ में त्रिशूल और डमरू। इन सबके एक खास मायने हैं। ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट आज आपको बता रहे हैं कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं और उसके मायने क्या हैं?
समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था, तब भगवान शिव ने उस विष का पान करके पूरे संसार की रक्षा की थी। उस विष का ताप अधिक है, जिसे शांत करने के लिए भगवान शिव अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। भस्म के लेप से उनका शरीर शीतल रहता है।
कैसे बनता है भगवान शिव के लिए भस्म
गोबर के उप्पलों को जलाकर उसकी राख को छाना जाता है। फिर उस राख को ठंडा करके उसमें कच्चा दूध, शहद और मक्खन मिलाकर उसे मला जाता है। इससे वह राख शीतल हो जाती है। जब उस राख को शरीर पर लगाते हैं तो वह अत्यंत शीतलता प्रदान करती है। भगवान शिव के शरीर पर इसी भस्म का लेप लगाया जाता है।
श्मशान की राख भी लगाते हैं भगवान शिव
भगवान शिव स्वयं काल के देवता हैं, तभी तो हम उनको महाकाल कहते हैं, वह श्मशान वासी भी हैं। वह अपने शरीर पर शवों को जलाने के बाद बची राख को भी अपने शरीर पर धारण करते हैं। मृत्यु के बाद शरीर पवित्र हो जाता है, उसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह कुछ नहीं रहता। उस शव को जलाने के पश्चात वह राख तो पवित्र ही होगी। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव उस पवित्र राख को अपने शरीर पर लगाकर आत्माओं से स्वयं को जोड़ते हैं।
इसलिए शिव की नगरी काशी में मिलता है मोक्ष
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव की नगरी काशी में जो अपने प्राण त्यागता है और उसका दाह संस्कार होता है, उसे मोक्ष मिलता है। भगवान शिव उस मृत व्यक्ति के दाहिने कान में मोक्ष के तारक मंत्र का उच्चारण करते हैं, जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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भगवान शिव के तारक मंत्र के उच्चारण के प्रमाण के संबंध में ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि काशी में गंगा के किनारे जब आप कोई शव दाह संस्कार के लिए लाएं और उसके दोनों कानों में रूई डाल दें। जब शव को चिता पर रखें तो उसका दहिने कान की जांच करें, आपको उस कान में रूई नहीं मिलेगी।
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