Karn Vedha Sanskar: हिंदू धर्म में क्यों जरूरी माना गया है कर्णवेध संस्कार, क्या हैं इसके फायदे
हिंदू धर्म में कान छिदवाना केवल एक फैशन के तौर पर नहीं देखा जाता बल्कि कान छिदवाना हिंदू परंपराओं का एक अभिन्न अंग बना हुआ है। साथ ही इसका आध्यात्मिक सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व भी है। चलिए जानते हैं कर्णवेध संस्कार (Karn Vedha Sanskar) से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कर्णवेध संस्कार एक प्राचीन हिंदू परंपरा है, जो हिंदू धर्म में मुख्य 16 संस्कारों में शामिल है। धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ कर्णवेध संस्कार वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर हिंदू धर्म में कर्णवेध संस्कार इतना महत्वपूर्ण क्यों माना गया है।
कब किया जाता है ये संस्कार
16 संस्कार में से 9वां संस्कार कर्णवेध संस्कार शुभ मुहूर्त में ही किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से बालक के जन्म के 12वें,13वें दिन या फिर 6 या 7 माह के बाद कान छिदवाया जाता है और कान में सोने या फिर चांदी की तार पहनाई जाती है। इस दौरान बालक के आने वाले जीवन की कल्याण के लिए मंत्रों का जप भी किया जाता है।
क्यों जरूरी ये कर्णवेध संस्कार
बच्चे की बौद्धिक क्षमता, शैक्षणिक और आध्यात्मिक विकास के लिए बालक का कर्णवेधन संस्कार करवाया जाता है। यह संस्कार उपनयन संस्कार से पहले कराए जाने का विधान है। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस संस्कार को करने से बालक के जीवन की सभी नकारात्मकताएं दूर होती हैं। साथ ही यह संस्कार ऊर्जा को संतुलित करने, नकारात्मक ग्रहों के प्रभावों से दूर रखने में भी मदद करता है।
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कर्णवेध संस्कार की प्रक्रिया
कर्णवेध संस्कार किसी मंदिर या फिर घर में ही किया जा सकता है। सबसे पहले किसी पंडित या ज्योतिषी से कर्णवेध संस्कार के लिए एक शुभ मुहूर्त निकलवाएं। स्थान को गंगाजल का छिड़काव करके पवित्र करें। जिस बालक का कर्णवेध संस्कार किया जाना है, उसे स्नान आदि कराने के बाद नए और साफ-सुथरे कपड़े पहनाएं।
किसी पुरोहित की सहायता लें और संस्कार से पहले देवी-देवताओं का आवाहन करें। माता-पिता को कर्णवेध संस्कार के दौरान सूर्य की दिशा यानी पूर्व दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। इसके बाद विधि-विधान से कर्णवेध संस्कार पूर्ण करवाएं।
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