Govardhan Parvat: हर दिन तिल के बराबर क्यों घट जाता है गोवर्धन पर्वत, इस ऋषि से मिला था श्राप
मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पर्वत की सात कोस (21 किमी) की परिक्रमा भी काफी प्रसिद्ध है। जिसे लेकर मान्यता है कि इस परिक्रमा को करने से सभी मनोरथ पूरे हो जाते हैं। आज आप हम आपको गोवर्धन पर्वत से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने जा रहे हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं, जो व्यक्ति को हैरत में डालने के साथ-साथ कुछ-न-कुछ शिक्षा भी देती हैं। मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत को लेकर भी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं।
कहा जाता है कि जब इंद्र देव ने क्रोध में आकर ब्रज में घनघोर वर्षा की थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। इससे ब्रजवासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा हुई। साथ ही गोवर्धन पर्वत को लेकर यह भी कहा जाता है कि यह पर्वत रोजाना तिल बराबर घटता है। चलिए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।
क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के पास से गुजर रहे थे। तभी गोवर्धन पर्वत की सुंदरता ने उनका मन मोह लिया। तब उनके मन में यह इच्छा जागी कि क्यों न वह इस पर्वत को काशी में स्थापित कर लें और और वहीं रहकर इसकी पूजा-अर्चना करें। इसके लिए उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि वह अपने पुत्र गोवर्धन को उन्हें सौंप दें।
गोवर्धन ने रखी ये शर्त
ऋषि पुलस्त्य के कहने पर द्रोणाचल पर्वत मान गए, लेकिन वह पुत्र वियोग से उदास भी हो गए। तब गोवर्धन ने ऋषि के साथ जाने के लिए एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार, ऋषि पुलस्त्य गोवर्धन को जहां भी रख देंगे, वह वहीं स्थापित हो जाएगा।
पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन की शर्त मान ली। तब गोवर्धन, ऋषि से कहते हैं कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी तक कैसे ले जाएंगे। इसपर ऋषि ने कहते हैं कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठा लूंगा।
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ऋषि भूल गए अपना वचन
जब रास्ते में ब्रज आया तो गोवर्धन पर्वत के मन में वहीं रुकने की इच्छा जागी। तब उन्होंने अपना भार बढ़ाना शुरू कर दिया। जब ऋषि को गोवर्धन पर्वत भारी लगने लगा, तो उन्हें थोड़ी देर विश्राम करने की सोची। ऋषि ने वचन भूलकर पर्वत को नीचे रख दिया। जब उन्होंने दुबारा पर्वत को उठाने का प्रयास किया, तो गोवर्धन से उन्हें उनका वचन याद दिलाया।
दिया ये श्राप
तब ऋषि पुलस्त्य कहते हैं कि वह वचन भूल गए थे, पर इसपर भी गोवर्धन अपनी जगह से नहीं हिलता। गोवर्धन की जिद के कारण ऋषि उसपर क्रोधित हो जाते हैं और उसे श्राप दे देते हैं। श्राप देते समय ऋषि कहते हैं कि तुमने मेरी मनोरथ पूरी नहीं होने दी, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम प्रतिदिन रोजाना तिल-तिल कर धरती में समाहित हो जाओगे। एक दिन ऐसा आएगा जब तुम पूरी तरह से धरती में से विलुप्त हो जाओगे।
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