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    किस वजह से शनिदेव 16 साल की उम्र तक व्यक्ति को नहीं देते हैं कोई भी कष्ट? यहां जानें

    तत्कालीन समय में ऋषि भारद्वाज समेत ऋषि मुनियों ने पिप्पलाद को शिव का अंशावतार बताया। ऋषि पिप्पलाद ने ही अपने तपोबल से शनिदेव (Effects of Shani Dev) को सोलह वर्ष तक बालक को कोई कष्ट न देने की सलाह दी थी। इस बारे में कहा जाता है कि ऋषि पिप्पलाद का बाल्यावस्था बड़ा ही संकटमय तरीके से गुजरा था। इस कष्ट का कारण शनिदेव को माना गया था।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 25 Jul 2024 12:00 PM (IST)
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    Lord Shani: कौन थे अथर्ववेद के संकलनकर्ता ऋषि पिप्पलाद ?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों को दो भागों में विभक्त किया गया है। इनमें प्रथम शुभ ग्रह हैं। वहीं, द्वितीय अशुभ ग्रह हैं। शुभ ग्रहों की श्रेणी में बुध, चंद्र, गुरु और शुक्र हैं। वहीं, अशुभ ग्रहों की श्रेणी में मंगल, राहु, केतु एवं शनि हैं। कई ज्योतिष सूर्य देव को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखते हैं। हालांकि, सूर्य देव आत्मा के कारक हैं। राहु और केतु के साथ युति होने पर सूर्य देव का शुभ प्रभाव जातक पर नहीं पड़ता है। साथ ही शनि के साथ रहने पर भी शनिदेव का प्रभाव बढ़ जाता है। हालांकि, कुंडली में सूर्य, मंगल और शनि के मजबूत होने पर जातक को जीवन में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती है।

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    ज्योतिषियों की मानें तो शनिदेव न्याय करते हैं। उन्हें न्याय करने का अधिकार प्राप्त है। यह वरदान उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुआ है। शनिदेव प्रत्येक राशि में ढाई साल तक रहते हैं। शनि के गोचर से जातक को साढ़े साती से गुजरना पड़ता है। साढ़े साती के तीन चरण हैं। इसके अलावा, शनि की ढैय्या ढाई साल की होती है। वहीं, शनि की महादशा 19 साल तक रहती है। इस दौरान जातक को जीवन में उतार-चढाव देखने को मिलता है। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों 16 वर्ष की आयु तक किसी भी जातक को शनिदेव कष्ट नहीं देते हैं? आसान शब्दों में कहें तो इस समय तक जातक शनि दोष से मुक्त रहते हैं। आइए, इससे जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं-

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    कौन थे ऋषि पिप्पलाद ?

    स्कन्द पुराण समेत कई अन्य शास्त्रों में ऋषि पिप्पलाद के जीवन से जुड़ी जानकारी उपलब्ध है। ऋषि पिप्पलाद महान दार्शनिक एवं रचनाकार थे। मान्यता है कि अथर्ववेद का संकलन ऋषि पिप्पलाद ने की है। चतुर्थ वेद अथर्ववेद में ऋषि पिप्पलाद द्वारा संकलित रचना है। इसे पिप्पलाद कहा जाता है। इसका प्रवर्तक ऋषि पिप्पलाद हैं। ऋषि पिप्पलाद महान दार्शनिक थे।

    उनकी विद्वता की परीक्षा लेने ऋषि भारद्वाज भी उनके पास गए थे। इसका वर्णन अथर्ववेद में निहित है। उस समय ऋषि पिप्पलाद ने अपने उत्तर से सबको अचंभित कर दिया था। तत्कालीन समय में ऋषि भारद्वाज समेत ऋषि मुनियों ने पिप्पलाद को शिव का अंशावतार बताया था। ऋषि पिप्पलाद ने ही अपने तपोबल से न्याय के देवता को सोलह वर्ष तक बालक को कोई कष्ट न देने की सलाह दी।

    इस बारे में कहा जाता है कि ऋषि पिप्पलाद का बाल्यावस्था बड़ा ही संकटमय तरीके से गुजरा था। इस कष्ट का कारण शनिदेव को माना गया था। इसके लिए ऋषि पिप्पलाद ने शनिदेव को न्याय करने के दौरान बच्चे को मुक्त रखने का निर्देश दिया था।

    कथा

    इतिहासकारों की मानें तो ऋषि पिप्पलाद के माता-पिता को लेकर शास्त्रों में विभिन्न मत है। स्कन्द पुराण की मानें तो ऋषि पिप्पलाद के पिता ऋषि दधीचि एवं माता सुभद्रा थीं। कालांतर में सुभद्रा मां बनने वाली थीं। उसी दौरान वृत्रासुर नामक असुर ने स्वर्ग लोक पर अधिपत्य स्थापित कर लिया था। साथ ही तीनों लोकों में वृत्रासुर का वर्चस्व कायम हो गया था।

    इस बारे में कहा जाता है कि वृत्रासुर को किसी अस्त्र या शस्त्र द्वारा मारा नहीं जा सकता था। स्वर्ग के सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए। उन्हें वृत्रासुर के आतंक की पूरी जानकारी दी। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि पृथ्वी पर दधीचि नामक महान ऋषि हैं। अगर उन्होंने अपनी अस्थियों का दान कर दिया, तो इससे समस्त लोकों का कल्याण हो सकता है। यह जान सभी ऋषि दधीचि के पास पहुंचे और याचना की। उस समय दधीचि ने स्वर्ग नरेश की विनती स्वीकार कर ली।

    इसके बाद ऋषि दधीचि ने समाधि बनाई और तप विद्या से पंचतत्व में विलीन हो गए। ऋषि दधीचि के पार्थिव शरीर से वज्र और सुदर्शन चक्र बना। जब ऋषि दधीचि की धर्मपत्नी को यह जानकारी हुई, तो ऋषि दधीचि की पत्नी ने गर्भ में पल रहे शिशु को पीपल देव को सौंप दिया (देवताओं की उपस्थिति में) और पति के साथ सती हो गई। नवजात शिशु कोई और नहीं, बल्कि ऋषि पिप्पलाद थे।

    ऋषि पिप्पलाद ने बाल्यावस्था में मिले कष्टों का कारण शनिदेव को माना। उस समय ऋषि पिप्पलाद क्रोधित होकर शनिदेव को सबक सिखाने के लिए भगवान शिव की कठिन तपस्या करने लगे। तब भगवान शिव ने ऋषि पिप्पलाद के क्रोध को शांत किया। हालांकि, शनिदेव को ऋषि पिप्पलाद के शरण में आना पड़ा। उस समय ऋषि पिप्पलाद ने यह कहकर शनिदेव को क्षमा दे दी कि 16 वर्ष तक की आयु के किसी भी जातक को शनिदेव कभी कष्ट नहीं देंगे।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।