मांगलिक कार्यों में क्यों किया जाता है लाल रंग का प्रयोग, पढ़े मंगल से जुड़ी यह कथा
शादी जैसे मांगलिक कार्य में लाल रंग का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे भगवान श्रीकृष्ण के विवाह की कथा है जो मंगल देव और गणेश जी से जुड़ी हुई है। जो आप तक पहुंचा रहे हैं ज्योतिषाचार्य अनीस व्यास।
ग्रहों की दशा सब पर असर डालती है, फिर चाहे कलयुग के इंसान हों या सतयुग या त्रेतायुग के भगवान। एक कहानी मंगल से जुड़ी, पढ़ते हैं इस लेख में, जो आप तक पहुंचा रहे हैं ज्योतिषाचार्य अनीस व्यास।
श्रीकृष्ण ने अपने विवाह के समय भगवान श्री गणेश की सहायता से मंगल देव संबंधित वस्तुओं का प्रयोग कर मंगल देव को प्रसन्न किया। श्रीकृष्ण द्वारा की गई सभी मांगलिक वस्तुएं विवाह की रस्म बन गई है। मांगलिक वस्तुएं व्यक्ति की मंगली कुण्डली हो या नहीं, फिर भी विवाह का अंग बन गई हैं। भगवान श्रीकृष्ण की कुण्डली में मंगली योग नहीं था। वृषभ लग्न में जन्में श्रीकृष्ण के नवम् भाव में मंगल देव विराजमान हैं। अतः मांगलिक योग नहीं बनता। फिर भी मंगल देव ने विवाह में विघ्न उत्पन्न कर श्रीकृष्ण को क्यों परेशान किया?
श्रीकृष्ण रूकमणी से विवाह रचाने के लिए बारात लेकर द्वारका से रवाना हुए। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के विवाह में बाधा उत्पन्न हो जाए, यह आश्चर्य की बात है, लेकिन ऐसा हुआ। श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर बारातियों के साथ निकले और कुछ दूर चलने पर उन्होंने देखा कि चूहे जमीन में बड़े-बड़े गड्डे बना रहे हैं और उनका रथ उन गड्डों में कभी हिचकोले खाता है और कभी फंस जाता था। श्रीकृष्ण और बाराती परेशान होकर बोले ये क्या हो रहा है। श्रीकृष्ण ने विघ्नहर्ता श्री गणेश का स्मरण किया। श्री गणेश तुरंत उनके समक्ष प्रकट हो गए। श्री कृष्ण ने कहा कि विघ्न-विनायक ये क्या हो रहा है? तब श्री गणेश ने कहा कि आपने जाने-अनजाने में मेरी और भूमि पुत्र मंगल देव की उपेक्षा कर दी है।
श्रीकृष्ण ने आश्चर्य चकित हो कर पूछा वह कैसे? तब गणेश जी ने बताया कि प्रथम पूज्य विनायक गणेश की आपने पूजा नहीं की और न ही उन्हें निमंत्रण दिया। इसके साथ ही आप बारात लेकर रवाना भी हो गए, लेकिन भूमि पूजन नहीं किया यानि ग्राम देवता की पूजा नहीं की। जाने अनजाने में हुई गलती को भगवान भी माफ करते हैं, बस आपका मन पवित्र होना चाहिए। अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी है। अगर गलती हुई तो उसका समाधान भी है, घबराने की जरूरत नहीं है। बस मार्गदर्शन यानि परामर्श जरूरी है। गणेश ने कहा कि विनायक की पूजा कर उन्हें न्यौता देकर घर में विराजमान करते हैं, और बारात रवाना करने से पहले भूमि पूजन करते हैं तो कोई विघ्न नहीं होता है। मेरे नाराज हो जाने से मेरी सवारी चूहे ने आपके मार्ग में विघ्न पैदा कर दिया। इसके साथ ही भूमि पुत्र होने के कारण मंगल देव भी आपके द्वारा भूमि पूजन नहीं करने से नाराज हैं।
आपने मुझे स्मरण किया है, अतः अपने चूहों को रोक रहा हूं, लेकिन हर जातक को विवाह पूर्व मूझे विनायक के रूप में आंमत्रित कर घर में विराजमान करना होगा, तभी विवाह निर्विघ्न सम्पन्न होंगे। इसलिए आज भी विवाह के पूर्व शहर के प्रमुख मंदिर से प्रतिकात्मक रूप से विघ्न विनाशक श्री विनायक को अपने घर लेकर आते हैं एवं विवाह निर्विघ्न होने के बाद उन्हें वापस मंदिर पहुंचाते हैं।
।।श्री गणेशाय नमः।।”
“विघ्न हरण मंगल करण, गणनायक गणराज।
प्रथम निमंत्रण आपको, सकल सुधरो काज।।”
श्री गणेश ने कहा कि मैं प्रसन्न हूं, पर आपको मंगल देव को मनाना होगा। तब श्रीकृष्ण ने कहा, जैसे आप कहें। फिर चूहों ने गढ्ढे बनाना बंद कर दिया और मंगल देव को प्रसन्न करने के लिए उस स्थान पर नारियल फोड़कर भूमि पूजन किया। इसके पश्चात् बारात ने आगे प्रस्थान किया। वह परंपरा आज भी कायम है। आज भी हम बारात दूसरे शहर में ले जाते हैं तो बस के टायर के नीचे नारियल फोड़ते हैं। यह ग्राम देवता और भूमि पूजन कहलाता है, लेकिन मंगल देव फिर भी प्रसन्न नहीं हुए और श्रीकृष्ण ने गणेश जी की सहायता से मंगल को प्रसन्न करने के लिए मांगलिक वस्तुओं का चलन प्रारंभ किया।
मंगल देव देवताओं के सेनापति हैं और उनका रंग लाल है। अतः श्रीकृष्ण ने मंगल को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग को बढ़ावा दिया। बैंड बाजे वालों की ड्रेस का रंग लाल किया गया। आज भी लाल रंग का समावेश बैड वालों की ड्रेस में होता है। फिर भी मंगल देव प्रसन्न नहीं हुए। तब श्री कृष्ण ने प्रथम पूज्य देव श्री गणेश जी के साथ मिलकर मंगल देव को प्रसन्न करने के लिए मांगलिक वस्तुओं का चलन प्रारंभ किया। मंगल देव का रंग लाल है और श्रीकृष्ण ने लाल रंग को ध्यान में रखते हुए मांगलिक कार्यक्रम यानि विवाह में लाल वस्तुओं को शामिल किया ताकि मंगल देव प्रसन्न हो सकें।
बारात जब रूकमणी के घर पहुंची, तब श्रीकृष्ण ने दुल्हन की पोशाक का रंग भी लाल करवाया। दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया गया। श्रीकृष्ण द्वारा दुल्हन की पोशाक लाल रंग करने की परम्परा आज भी चल रही है। श्रीकृष्ण ने एक बार फिर गणेश जी का स्मरण किया और पूछा अब ठीक है? गणेश जी ने कहा नहीं अभी मंगल संतुष्ट नहीं हैं।
लाल सिन्दूर
भगवान श्रीकृष्ण ने मंगल देव के लाल रंग के सिन्दूर से दुल्हन की मांग भरी, लेकिन मंगल देव प्रसन्न नहीं हुए। माखनचोर श्रीकृष्ण ने मंगल को प्रसन्न करने के लिए एक और प्रयास किया। प्रयास करने पर सफलता मिली और श्रीकृष्ण ने भी वहीं किया।
मंगल के लिए मंगलसूत्र
श्रीकृष्ण ने श्री गणेश की सहायता से मंगल देव को प्रसन्न करने के लिए अथक प्रयास किए, लेकिन हार नहीं मानी। श्रीकृष्ण ने लाल रंग के धागे में कस्तुरी रंगे का लाकेट रूकमणी को गले में पहनाया, जिसे हम आज मंगलसूत्र कहते हैं। तब मंगल देव प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने कहा कि एक भूमि पूजन नहीं करने से मंगल देव इतने रूष्ट हो गए? इस पर श्री गणेश ने कहा कि मंगल देव देवताओं के सेनापति हैं और इनका वर्ण लाल है। लेकिन भूमि पूजन से ही मंगल देव प्रसन्न हो गए थे। शेष सभी रस्में मैने ही आपसे पूर्ण करवाई है, ताकि कलयुग में मंगली दोष किसी को हो तो इन रस्मों से राहत मिल सकें। आज भी ये परंपराएं यूं कि यूं बनी हुई हैं। मंगली दोष न होने पर भी विवाह में मंगल वस्तुओं को होना अनिवार्य है। इस प्रकार शुरू हुआ विवाह में मांगलिक वस्तुओं का चलन।
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