Samudra Manthan: कौन थे स्वरभानु और कैसे बने राहु और केतु? समुद्र मंथन से है जुड़ा है कनेक्शन
ज्योतिषियों की मानें तो राहु और केतु (Rahu Gochar 2025) के चलते कुंडली में कई प्रकार के दोष लगते हैं। राहु के गुरु के साथ रहने पर गुरु चांडाल दोष लगता है। वहीं राहु के मंगल के साथ रहने पर अंगारक दोष लगता है। राहु और केतु की कुदृष्टि के चलते जीवन में ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को मायावी ग्रह कहा जाता है। वर्तमान समय में राहु मीन राशि में विराजमान हैं और केतु कन्या राशि में विराजमान हैं। मई महीने में राहु और केतु राशि परिवर्तन करेंगे। राहु और केतु दोनों वक्री चाल चलते हैं। वहीं, दोनों एक राशि में डेढ़ साल तक रहते हैं। इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं।
ज्योतिषियों की मानें तो राहु और केतु के चलते ग्रहण लगता है। राहु के द्वारा सूर्य और चंद्र ग्रहण लगता है। ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर राहु का प्रभाव बढ़ जाता है। आसान शब्दों में कहें तो प्रबल रहता है। इसके लिए ग्रहण के दौरान शुभ काम नहीं किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि राहु और केतु कौन हैं और समुद्र मंथन (Samudra Manthan) से क्या कनेक्शन है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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कौन थे स्वरभानु?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि स्वरभानु की माता होलिका थीं और उनके पिता का नाम विप्रचिति था। समुद्र मंथन के समय देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन से विष समेत 14 शुभ रत्नों की प्राप्ति हुई। समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष की उत्पत्ति हुई। उस समय देवताओं ने भगवान शिव से विष से रक्षा करने की याचना की। यह जान भगवान शिव ने तीनों लोकों की रक्षा के लिए विषपान किया। उसके बाद क्रमशः 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई। अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अमृत पान के लिए देवता और दानवों के मध्य वाक्य युद्ध शुरू हो गया था।
तब भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया। हालांकि, इस दौरान स्वरभानु देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गए। सूर्य और चंद्र देव स्वरभानु को पहचान गए। उन्होंने सांकेतिक भाषा में भगवान विष्णु को असुर स्वरभानु की जानकारी दी। यह जान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवता के रूप में पंक्ति में बैठे स्वरभानु का वध कर दिया। हालांकि, तब तक स्वरभानु अमृत ग्रहण कर चुका था। यह जान भगवान विष्णु ने स्वरभानु के धड़ और शरीर को अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। स्वरभानु ही राहु और केतु बने। उस समय से सूर्य देव चंद्र देव को राहु और केतु अपना शत्रु मानते हैं।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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