Virabhadra: देवों के देव महादेव के प्रथम गण वीरभद्र को क्यों कहा जाता है महाकाल ?
भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। शिव पुराण (Lord Shiva) में उनकी महिमा का वर्णन विस्तारपूर्वक है। भगवान शिव को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम भोलेनाथ है। इसका आशय यह है कि भगवान शिव यथाशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी कृपा साधकों पर बरसती है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा-भक्ति करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में भगवान शिव के उपासकों की संख्या सबसे अधिक है। शिव के उपासकों को शैव कहा जाता है। शिव पुराण में वर्णित है कि शिव के शरण में रहने वाले साधकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही मृत्यु उपरांत साधक को शिव लोक की प्राप्ति होती है। शिव आदि हैं, प्रारंभ हैं और शिव ही हर समस्या का अंत हैं। भगवान शिव अपने भक्तों के लिए बेहद भोले हैं, तो दुष्टों के लिए महाकाल हैं। इसका प्रमाण शिव पुराण समेत कई पुराणों में वर्णित हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शिव के प्रथम गण वीरभद्र की उत्पत्ति कैसे हुई है और क्यों उन्हें महाकाल कहा जाता है ? आइए जानते हैं-
कैसे हुई वीरभद्र की उत्पत्ति ?
शिव पुराण में वर्णित है कि भगवान शिव की जटा से वीरभद्र (Virabhadra History) की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव और माता सती के विवाह से राजा दक्ष प्रसन्न नहीं थे। इसके चलते भगवान शिव एवं राजा दक्ष के मध्य संबंध बेहद कटु हो गये थे। तत्कालीन समय में राजा दक्ष ने भगवान शिव से सभी संबंध तोड़ लिए थे। इस बात को भगवान शिव भली-भांति से जानते थे। हालांकि, माता सती को पिता से स्नेह बरकरार था। उसी समय एक बार राजा दक्ष ने अपने गृह पर विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में भगवान शिव को छोड़कर तीनों लोकों को आमंत्रित किया गया था। जब इस बात की जानकरी माता सती को हुई, तो उन्होंने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी।
भगवान शिव ने सर्वप्रथम न जाने की सलाह दी। इसके बावजूद माता सती नहीं मानी। तब भगवान शिव ने कहा- आपकी इच्छा है, तो जरूर जाएं, लेकिन एक बात जरूर गांठ बांध लें कि वहां पर आप उपहास का पात्र जरूर बनेंगी। अनुमति मिलने से माता सती बेहद प्रसन्न हुईं। इसके बाद माता सती विशाल यज्ञ में शामिल हुईं। हालांकि, राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव की कड़ी आलोचना की गई। उपस्थित लोग भगवान शिव के प्रति भला बुरा कह रहे थे। स्वयं राजा दक्ष अपने दामाद भगवान शिव का उपहास कर रहे थे। यह देख माता सती को ग्लानि हुई। उस समय माता सती को भगवान शिव की बात याद आई। यह सोचकर माता सती कैलाश न लौटने का प्रण किया।
कुछ देर विचार करने के बाद माता सती यज्ञ वेदी में कूदकर प्राण की आहुति दे दी। यह सूचना महादेव को हुई। उस समय महादेव ने क्रोध में आकर अपनी जटा से वीरभद्र को प्रकट कर राजा दक्ष को दंड देने का आदेश दिया। भगवान शिव का आदेश पाकर वीरभद्र और भद्रकाली तत्क्षण राजा दक्ष का संहार करने उनके निवास स्थान पर पहुँच गये। उस समय देवताओं ने राजा दक्ष की सहायता की। हालांकि, युद्ध में वीरभद्र और भद्रकाली के क्रोध के सामने राजा दक्ष की सेना और देवता टिक न सके। उस समय भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप कर वीरभद्र के क्रोध को शांत करने की पूरी कोशिश की। तब तक वीरभद्र ने राजा दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया था। यह सूचना त्रिभुवन में आग की तरह फैल गई।
तब ब्रह्मा जी ने आदिशक्ति भगवान शिव से अपने क्रोध को शांत करने की याचना की। उधर भगवान शिव भी माता सती के वियोग में तांडव करने लगे। यह देख भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के पार्थिव शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उस समय भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ। तब भगवान शिव राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ स्थली पहुंचे। सभी देवगणों ने भगवान शिव को प्रणाम कर राजा दक्ष को जीवित करने की याचना की। भगवान शिव बड़े ही दयालु हैं। तत्क्षण वीरभद्र को क्रोध न करने की सलाह दी। तब जाकर वीरभद्र और भद्रकाली का क्रोध शांत हुआ। उसी समय भगवान शिव ने राजा दक्ष को पुनर्जन्म दिया।
वीरभद्र का स्वरूप
शास्त्रों में वीरभद्र को भगवान शिव का भयानक अवतार बताया गया है। वीरभद्र के दस हस्त हैं, जो भयानक हथियारों से सुसज्जित हैं। वीरभद्र के हस्त में त्रिशूल, तलवार, ढाल, धनुष, पाश, चक्र, शंख, भाला और खप्पर हैं। वहीं, वीरभद्र घोड़े की सवारी करते हैं। इनका निवास स्थान कैलाश और श्मशान घाट में है। शैव जानकारों की मानें तो वीरभद्र का रूप बेहद रौद्र है।
वीरभद्र को प्रसन्न कैसे करें ?
मंगलवार के दिन वीरभद्र की पूजा की जाती है। इस दिन साधक भगवान शिव संग वीरभद्र की पूजा करते हैं। वहीं, पूजा के समय निम्न मंत्रों का जप करें। इन मंत्रों के जप से साधक को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही महादेव के प्रथम गण वीरभद्र की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।
- ॐ वीरभद्राय नमः
- ॐ वीररुद्राय नमः
- ॐ श्री वीरभद्रेश्वराय नमः
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