Lord Krishna: भगवान श्रीकृष्ण के अनेकों रुप, भक्त की जैसी भावना, वैसे ही दर्शन देते हैं भगवान
Lord Krishna भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व भारतीय इतिहास के लिये ही नहीं विश्व इतिहास के लिये भी अलौकिक एवम् अद्भुत है। वे हमारी संस्कृति के एक विलक्षण महानायक हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी तुलना न किसी अवतार से की जा सकती है और न संसार के किसी महापुरुष से।
Lord Krishna: भगवान श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व भारतीय इतिहास के लिये ही नहीं, विश्व इतिहास के लिये भी अलौकिक एवम् अद्भुत है और सदा रहेगा। वे हमारी संस्कृति के एक विलक्षण महानायक हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसकी तुलना न किसी अवतार से की जा सकती है और न संसार के किसी महापुरुष से। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास दीखता है, जो साधारणतः समझ में नहीं आता। यही उनके जीवन चरित की विलक्षणता है और यही उनका विलक्षण जीवन दर्शन भी है। अपनी सरस एवं मोहक लीलाओं तथा परम पावन उपदेशों से अन्तः एवं बाह्य दृष्टि द्वारा जो अमूल्य शिक्षा उन्होंने दिया था, वह किसी वाणी अथवा लेखनी की वर्णनीय शक्ति एवं मन की कल्पना की सीमा में नहीं आ सकता, यही उनकी विलक्षणता है।
ज्ञानी-ध्यानी जिन्हें खोजते हुए हार जाते हैं, जो न ब्रह्म में मिलते हैं, न पुराणों में और न वेद की ऋचाओं में, वे मिलते हैं ब्रजभूमि की किसी कुंज-निकुंज में राधारानी के पैरों को दबाते हुए। यह श्रीकृष्ण के चरित्र की विलक्षणता ही तो है कि वे अजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। मृत्युंजय होने पर भी मृत्यु का वरण करते हैं। वे सर्वशक्तिमान होने पर भी जन्म लेते हैं कंस के बन्दीगृह में।
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी एवं बहुरंगी है, यानी बुद्धिमत्ता, चातुर्य, युद्धनीति, आकर्षण, प्रेमभाव, गुरुत्व, सुख, दुख और न जाने कितनी विशेषताओं एवं विलक्षणताओं को स्वयं में समेटे हैं। एक भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही, साथ में गुरु भी हैं, जो जीवन जीने की कला सिखाते हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व की विविध विशेषताओं से भारतीय-संस्कृति में महानायक का पद प्राप्त किया। एक ओर वे राजनीति के ज्ञाता, तो दूसरी ओर दर्शन के प्रकांड पंडित थे।
धार्मिक जगत् में भी नेतृत्व करते हुए ज्ञान-कर्म-भक्ति का समन्वयवादी धर्म उन्होंने प्रवर्तित किया। अपनी योग्यताओं के आधार पर वे युगपुरुष थे, जो आगे चलकर युगावतार के रूप में स्वीकृत हुए। उन्हें हम एक महान् क्रांतिकारी नायक के रूप में स्मरण करते हैं। वे दार्शनिक, चिंतक, गीता के माध्यम से कर्म और सांख्य योग के संदेशवाहक और महाभारत युद्ध के नीति निर्देशक थे, किंतु सरल-निश्छल ब्रजवासियों के लिए तो वह रास रचैया, माखन चोर, गोपियों की मटकी फोड़ने वाले नटखट कन्हैया और गोपियों के चितचोर थे। गीता में इसी की भावाभिव्यक्ति है- हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस भावना से भजता है, मैं भी उसको उसी प्रकार से भजता हूं।
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