Ramcharitmanas: कौन होता है सच्चा मित्र? जब भगवान राम ने सुग्रीव को बताया उसकी पहचान
Ramcharitmanas मित्र कैसा होना चाहिए उसमें क्या गुण हो इसके बारे में काफी कुछ आपने पहले भी पढ़ा होगा। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम के माध्यम से एक अच्छे मित्र की पहचान बताई है। आइए इसके बारे में जानें।
Ramcharitmanas: हम सब लोगों की अपनी मित्र मंडली होती है। किसी के मित्रों की संख्या कम और किसी की ज्यादा हो सकती है। मित्र कैसा होना चाहिए, उसमें क्या गुण हो, इसके बारे में काफी कुछ आपने पहले भी पढ़ा होगा। माता-पिता, भाई-बंधु, गुरुजन आदि भी बताते हैं कि सही लोगों की संगत करना चाहिए। बूरे लोगों की संगत इंसान को बूरा ही बनाती है। रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम के माध्यम से एक अच्छे मित्र की पहचान बताई है। इसके बारे में बता रहे हैं संत मैथिलीशरण (भाई जी)।
जिन्ह कें असि मति सहज न आई।
ते सठ कत हठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रगटे अवगुनन्हि दुरावा।।
देत लेत मन संक न धरई।
बल अनुमान सदा हित करई।।
बिपति काल कर सतगुन नेहा।
श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।।
यहां पर सुग्रीव को आश्वासन देते हुए भगवान राम संत और मित्र के गुणों को एक करके यह बताना चाह रहे हैं कि वस्तुत: मित्रता का निर्वहन तो संत ही करता है, या फिर जो ऐसा करे, वह संत है। संत किसी वेश का नाम न कभी था, न ही है। वह तो चरित्र का नाम है। जो अपने मित्र के दोष को छुपाए और गुणों को सार्वजनिक करे। उसे कुपंथ से निकालकर श्रेष्ठ मार्ग पर लगाने में पूरा सहयोग दे, ताकि मित्र का चरित्र सार्वजनिक करने में संकोच न हो।
उन्होंने और एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात भी कही कि मित्र को मित्र से कुछ लेने और देने में संकोच नहीं करना चाहिए। यदि एक मित्र हमेशा देता रहे और दूसरा लेता रहे, तो लेने वाले मित्र में हीनता का भाव आए बगैर नहीं रहेगा, इसीलिए भगवान ने सुग्रीव को दिया भी और वे यदि सीता जी की खोज में कुछ योगदान दे सकते हैं और यदि उससे उनका स्वाभिमान बना रहता है, तो उनकी सेवा लेना राम और रामराज्य की विचारधारा के अंतर्गत है।
दीन बनाकर देना सांसारिकता है और विश्वास जीतकर लेना और देना साधुता है। जिन लोगों में ऐसी बुद्धि नहीं आई है, वे लोग संसार में मित्रता के नाम पर व्यवसाय ही कर रहे हैं और अनावश्यक दंभ का प्रचार कर रहे हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए।
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