Pitru Paksha 2025: गयाजी जाने का नहीं बन रहा योग, तो पितरों के मोक्ष के लिए यहां भी कर सकते हैं पिंडदान
गयाजी के अतिरिक्त हरिद्वार बद्रीनाथ और प्रयागराज में भी पितरों का पिंडदान किया जाता है। इन जगहों पर पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करने से पूर्वजों को म ...और पढ़ें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में गयाजी का खास महत्व है। कहते हैं कि गयाजी में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए गयाजी को मोक्ष नगरी भी कहा जाता है। हर साल पितृ पक्ष के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु गयाजी आकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। इसके साथ ही गयाजी में असमय मरने वाले पितरों का भी पिंडदान किया जाता है।
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अकाल मृत्यु वाले पितरों का पिंडदान प्रेतशिला पर्वत पर किया जाता है। इस पर्वत की शिखा पर अकाल मृत्यु वाले पितरों का पिंडदान किया जाता है। पिंडदान के लिए सत्तू का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गयाजी के अतिरिक्त आप इन जगहों पर भी अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं? आइए, इन पवित्र स्थानों के बारे में जानते हैं-
पूरी
जगन्नाथ मंदिर के लिए पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पूरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा निकाली जाती है। रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु रथ यात्रा में शामिल होते हैं। इसके साथ ही पूरी के समुद्र तट पर पितरों का श्राद्ध कर्म भी किया जाता है। अगर आप किसी कारणवश पितरों के पिंडदान के लिए मोक्ष नगरी गयाजी नहीं जा पाते हैं, तो ओडिशा के पूरी में भी अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं। कहते हैं कि पूरी में समुद्र तट पर पूर्वजों का पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति विशेष पर भगवान जगन्नाथ की कृपा बरसती है।
द्वारका
द्वारका को बांके बिहारी कृष्ण कन्हैया की नगरी कहा जाता है। द्वारका स्थित गोमती नदी के तट पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। अगर आप गयाजी नहीं जा पाते हैं, तो भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका में अपने पूर्वजों का पिंडदान कर सकते हैं। इसके लिए आप कुल पंडित से भी सलाह ले सकते हैं। हर साल पितृ पक्ष के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु द्वारका में अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। इसके लिए आप गोमती नदी और द्वारका घाट का चयन कर सकते हैं। इन दोनों जगहों पर पितरों का पिंडदान कर सकते हैं।
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