Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानें, कब किया जाता है नामकरण संस्कार और क्या है इसका धार्मिक महत्व

    By Umanath SinghEdited By:
    Updated: Thu, 23 Dec 2021 06:45 AM (IST)

    ज्योतिषों की मानें तो शिशु के जन्म के बाद सूतक काल प्रारंभ होता जाता है जो दसवें दिन खत्म होता है। हालांकि जाति के आधार पर सूतक निर्धारित होता है लेकिन आमतौर पर दसवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।

    Hero Image
    जानें, कब किया जाता है नामकरण संस्कार और क्या है इसका धार्मिक महत्व

    वर्तमान समय में सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। इससे पूर्व उत्तर वैदिक काल में 25 संस्कारों का विधान था। वहीं, दैविक काल में चालीस संस्कारों किए जाते थे। इनमें एक संस्कार नामकरण है। सभी धर्मों में नामकरण संस्कार का विधान है, लेकिन सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि नामकरण से शिशु के संस्कार का पता चलता है। इस संस्कार से शिशु में कर्म की प्रवृति जागृत होती है। अत: नामाकरण संस्कार किया जाता है। आइए, इस संस्कार के बारे में सबकुछ जानते हैं-

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नामाकरण संस्कार कब किया जाता है

    ज्योतिषों की मानें तो शिशु के जन्म के बाद सूतक काल प्रारंभ होता जाता है, जो दसवें दिन खत्म होता है। हालांकि, जाति के आधार पर सूतक निर्धारित होता है, लेकिन आमतौर पर दसवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। इस दिन पूजा-पाठ के बाद बच्चे को शहद का स्वाद चटाया जाता है। अगर किसी कारणवश यह संस्कार दसवें दिन नहीं किया जाता है, तो तीन महीने बाद या अगले साल किया जाता है।

    नामाकरण संस्कार के बाद सबसे पहले भगवान भास्कर को फिर धरती माता को प्रणाम कराया जाता है। तदोउपरांत, देवी-देवताओं सहित कुल देवी-देवताओं का आशीर्वाद दिलाया जाता है। इस समय शिशु के दीर्घायु और जीवन में उच्चतम स्थान प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली के अनुसार राशि देखकर शिशु को नाम दिया जाता है, जिसमें एक नाम सार्वजनिक और एक निजी नाम दिया जाता है। निजी नाम केवल माता-पिता को पता होता है।

    नामाकरण संस्कार का महत्व

    नामकरण संस्कार से शिशु दीर्घायु होकर अपने जीवन में यश, कृति, सुख, समृद्धि और सफलता पाता है। कालांतर से नामाकरण संस्कार का विधान किया जाता है। वर्तमान समय में इसका महत्व बढ़ गया है। इससे जातक कर्मशील होता है। इस संस्कार में कुंडली देखकर शिशु को राशि अनुसार नाम दिया जाता है। इससे शिशु के जीवन में सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए शिशु का नामाकरण संस्कार अवश्य करना चाहिए।

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'