Guru Pradosh Vrat 2024: कब है सावन माह का पहला प्रदोष व्रत? नोट करें शुभ मुहूर्त, तिथि एवं पूजा विधि
सावन का महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है। इस महीने में सावन सोमवार प्रदोष व्रत हरियाली तीज (Guru Pradosh Vrat 2024) और सावन शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही मनोवांछित फल पाने के लिए व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में व्याप्त धन समेत सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Guru Pradosh Vrat 2024: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए प्रदोष व्रत पर उपवास रखा जाता है। धर्मिक मत है कि भगवान शिव जी पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सावन महीने में कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें एक प्रदोष व्रत है। यह पर्व हर माह कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत का पुण्य फल दिन अनुसार प्राप्त होता है। आइए, सावन माह के पहले प्रदोष व्रत के बारे में सबकुछ जानते हैं-
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गुरु प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, सावन माह का पहला प्रदोष व्रत गुरुवार 1 अगस्त को रखा जाएगा। सावन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 01 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 28 मिनट पर शुरू होगी और इसके अगले दिन यानी 02 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष व्रत पर संध्याकाल में भगवान शिव की पूजा की जाती है। अतः गुरुवार 01 अगस्त को सावन माह का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
गुरु प्रदोष व्रत महत्व
प्रदोष व्रत का पुण्य फल दिन अनुसार प्राप्त होता है। गुरुवार के दिन पड़ने के चलते यह सावन गुरु प्रदोष व्रत कहलाएगा। गुरु प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट से छुटकारा मिलता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए करती हैं।
पूजा विधि
सावन गुरु प्रदोष व्रत पर सूर्योदय से पूर्व उठें। इस समय भगवान शिव संग मां पार्वती को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें। नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। साधक दिन भर उपवास रख प्रदोष काल में भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं। स्नान करने के बाद आचमन कर श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करें। अब सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद विधि-विधान से पंचोपचार और अभिषेक कर भगवान शिव की पूजा करें। इस समय शिव चालीसा एवं शिव मंत्रों का जप करें। अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती के बाद फलाहार करें। अगले दिन स्नान के बाद विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद पारण करें।
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