धर्मशास्त्रों के अनुसार रतिक्रिया का उचित समय कौन सा होना चाहिए
रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी समय को रतिक्रिया के उचित समय माना जाता है।
रतिक्रिया का धर्म की दृष्टि से अपना महत्व और अपनी उपयोगिता है। हमारे धर्मशास्त्रों में इस बाबत उल्लेख किया गया है कि रतिक्रिया का उचित समय कौन सा होना चाहिए। सनातन धर्म में रतिक्रिया को एक अवश्यंभावी अनुष्ठान बताया गया है। उल्लेख के अनुसार रतिक्रिया सभी प्राणी संपन्न करते हैं।
विवाह के बाद रतिक्रिया का अपना महत्व है। इसके माध्यम से हमें संतानोत्पत्ति होती है एवं वंश आगे बढ़ता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि होने वाली संतान का निर्धारण भी रतिक्रिया के समय से होता है। ऐसे में हमें यह जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि रतिक्रिया किस समय विशेष पर की जाए ताकि इसके लाभ मिल सकें।
धर्मशास्त्र कहते हैं रात्रि का पहला पहर रतिक्रिया के लिए उचित समय है। यह एक मान्यता है कि जो रतिक्रिया रात्रि के प्रथम पहर में की जाती है, उसके फलस्वरूप जो संतान का जन्म होता है, उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।
ऐसी संतान अपनी प्रवृत्ति एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। चूंकि ऐसे जातकों को शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है, इसलिए वे लंबी आयु जीते हैं एवं भाग्य के भी प्रबल धनी होते हैं।
इसलिए प्रथम पहर का है महत्व
रतिक्रिया के लिए रात्रि के प्रथम पहर का महत्व इसलिए है क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रथम पहर के बाद राक्षस गण पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकलते हैं। उसी दौरान जो रतिक्रिया की गई हो, उससे उत्पन्न होने वाली संतान में भी राक्षसों के ही समान गुण आने की प्रबल संभावना होती है। इसके चलते वह संतान भोगी, दुर्गुणी, माता-पिता एवं बुजुर्गों की अवमानना करने वाली, अनैतिक, अधर्मी, अविवेकी एवं असत्य का पक्ष लेने वाली होती है।
अन्य पहर में रतिक्रिया से ये हानियां
रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी समय को रतिक्रिया के उचित समय माना जाता है। लेकिन यदि इसके अलावा शेष किसी अन्य पहर में रतिक्रिया की जाती है तो परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट सामने आते हैं।
पहले पहर के बाद रतिक्रिया इसलिए भी अशुभकारी है क्योंकि ऐसा करने से शरीर को कई रोग घेर लेते हैं। व्यक्ति अनिंद्रा, मानसिक क्लेश, थकान का शिकार हो सकता है एवं माना जाता है कि भाग्य भी उससे रूठ जाता है।
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