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    मां सिद्धिदात्री की क्या है महिमा व पूजन-विधि

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    Updated: Wed, 24 Sep 2014 02:43 PM (IST)

    [प्रीति झा]। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं, नवमी के दिन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री। देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र औ

    नवरात्र-पूजन के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं, नवमी के दिन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जगत के कल्याण हेतु नौ रूपों में प्रकट हुई और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री।

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    देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं। देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं। देवी जी की भक्ति जो भी हृदय से करता है मां उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं। मां का ध्यान करने के लिए इस मंत्र का जाप कर सकते हैं-

    सिद्धगन्धर्वयक्षाघरसुरैरमरैरपि से व्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।

    पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था तथा इन्हें के द्वारा भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ। अणिमा, महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां हैं जिनका मार्कण्डेय पुराण में उल्लेख किया गया है।

    इसके अलावा ब्रह्ववैवर्त पुराण में अनेक सिद्धियों का वर्णन है जैसे सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

    नवमी सिद्धिदात्री पूजा विधि-

    इस मंत्र के साथ माता का आवाहन करें-

    सिद्धिदात्री मंत्र-

    या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

    सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। हवन से पूर्व सभी देवी देवाताओं एवं की पूजा कर लेनी चाहिए। हवन करते वक्त सभी देवी देवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए। बाद में माता के सभी रूपों के नाम से अहुति देनी चाहिए।

    दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं। अत: सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम: से कम से कम 108 बार हवि दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती और क्षमा प्रार्थना करें।

    हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है उसे बाटें और हवन की अग्नि ठंडी को पवित्र जल में विसर्जित कर दें अथवा भक्तों के में बांट दें। यह भस्म-रोग, संताप एवं ग्रह बाधा से आपकी रक्षा करती है एवं मन से भय को दूर रखती है।

    ध्यान-

    वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

    कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥

    स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।

    शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥

    पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

    मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्॥

    प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।

    कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

    स्तोत्र पाठ-

    कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।

    स्मेरमुखी शिवपत्‍‌नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥

    पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।

    नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोस्तुते॥

    परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।

    परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

    विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।

    विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

    भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।

    भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

    धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।

    मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

    कवच-

    ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।

    हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥

    ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।

    कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥

    [प्रस्तुति : प्रीति झा]

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