Navdha Bhakti: क्या होती है नवधा भक्ति, जिसका भगवान श्रीराम ने शबरी को बताया था महत्व
सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम (Navadha Bhakti Importance) को चौदह वर्षों का वनवास मिला था। इस दौरान रावण ने मां जानकी का हरण कर लिया था। उस समय वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और मां जानकी को मुक्त कराया था। भगवान श्रीराम की वापसी पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया था।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति प्रमुख मार्ग है। सामान्य व्यक्ति भक्ति के माध्यम से प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भक्त भगवान के वश में होते हैं। वहीं, भगवान भी भक्त के वश में होते हैं। सच्ची भक्ति करने वाले साधकों पर प्रभु की कृपा अवश्य ही बरसती है। उनकी कृपा से साधक को ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है। भक्ति के नौ प्रकार हैं। इन्हें नवधा भक्ति (Navdha Bhakti) कहा जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि नवधा भक्ति क्या है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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नवधा भक्ति क्या है?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि सतयुग में भक्त प्रह्लाद ने सबसे पहले नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। यह उपदेश उन्होंने अपने पिता हिरण्यकश्यप को दिया था। तत्कालीन समय में हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानते थे। जीवन के सत्य से अवगत कराने के लिए भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। इसके बाद भगवान श्रीराम ने माता शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। यह बात त्रेता युग की है।
रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में नवधा भक्ति का उल्लेख है। भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मिला था। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम की भेंट माता शबरी से हुई थी। उस समय माता शबरी ने जूठे बेर खिलाकर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था। यह माता शबरी के भगवान राम के प्रति प्रेम और स्नेह के भाव को दर्शाता है। उस समय माता शबरी जूठे बेर खिलाने के लिए कुंठित भी हुई थी। तब भगवान श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देकर दुविधा दूर की थी।
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्॥
भक्ति के नौ प्रकार
- श्रवण- पहली भक्ति भगवान की कथा और लीला को सुनना है। इसके लिए राजा परीक्षित की उपमा दी जाती है। राजा परीक्षित ने श्रवण के जरिए प्रभु की भक्ति की थी।
- कीर्तन- नवधा भक्ति की दूसरी भक्ति कीर्तन है। कलयुग में भी एक कहावत बेहद प्रचलित है।
“कलयुग केवल नाम अधारा,
सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा”
इस दोहे का तात्पर्य यह है कि कीर्तन-भजन कर प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है। शुकदेव ने कीर्तन कर ही प्रभु को प्राप्त किया था।
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