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    Navdha Bhakti: क्या होती है नवधा भक्ति, जिसका भगवान श्रीराम ने शबरी को बताया था महत्व

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Fri, 22 Nov 2024 01:09 PM (IST)

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम (Navadha Bhakti Importance) को चौदह वर्षों का वनवास मिला था। इस दौरान रावण ने मां जानकी का हरण कर लिया था। उस समय वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और मां जानकी को मुक्त कराया था। भगवान श्रीराम की वापसी पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया था।

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    Navdha Bhakti: कैसे करें भगवान विष्णु को प्रसन्न?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति प्रमुख मार्ग है। सामान्य व्यक्ति भक्ति के माध्यम से प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भक्त भगवान के वश में होते हैं। वहीं, भगवान भी भक्त के वश में होते हैं। सच्ची भक्ति करने वाले साधकों पर प्रभु की कृपा अवश्य ही बरसती है। उनकी कृपा से साधक को ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है। भक्ति के नौ प्रकार हैं। इन्हें नवधा भक्ति (Navdha Bhakti) कहा जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि नवधा भक्ति क्या है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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    नवधा भक्ति क्या है?

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि सतयुग में भक्त प्रह्लाद ने सबसे पहले नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। यह उपदेश उन्होंने अपने पिता हिरण्यकश्यप को दिया था। तत्कालीन समय में हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानते थे।  जीवन के सत्य से अवगत कराने के लिए भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। इसके बाद भगवान श्रीराम ने माता शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। यह बात त्रेता युग की है।

    रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में नवधा भक्ति का उल्लेख है। भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मिला था। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम की भेंट माता शबरी से हुई थी। उस समय माता शबरी ने जूठे बेर खिलाकर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था। यह माता शबरी के भगवान राम के प्रति प्रेम और स्नेह के भाव को दर्शाता है। उस समय माता शबरी जूठे बेर खिलाने के लिए कुंठित भी हुई थी। तब भगवान श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देकर दुविधा दूर की थी।

    श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।

    अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्॥

    भक्ति के नौ प्रकार

    • श्रवण- पहली भक्ति भगवान की कथा और लीला को सुनना है। इसके लिए राजा परीक्षित की उपमा दी जाती है। राजा परीक्षित ने श्रवण के जरिए प्रभु की भक्ति की थी।
    • कीर्तन- नवधा भक्ति की दूसरी भक्ति कीर्तन है। कलयुग में भी एक कहावत बेहद प्रचलित है।

      “कलयुग केवल नाम अधारा,

    सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा”

  • इस दोहे का तात्पर्य यह है कि कीर्तन-भजन कर प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है। शुकदेव ने कीर्तन कर ही प्रभु को प्राप्त किया था।

  • नवधा भक्ति की तीसरी भक्ति स्मरण है। कोई भी भक्त भगवान का स्मरण एवं चिंतन कर उच्च लोक को प्राप्त कर सकता है। भक्त प्रह्लाद ने नारायण-नारायण का स्मरण कर प्रभु को प्राप्त किया था।
  • पादसेवन के जरिए भी प्रभु की भक्ति की जा सकती है। नवधा भक्ति में इसका वर्णन है। धन की देवी मां लक्ष्मी पादसेवन के जरिए सत्यनारायण की भक्ति करती हैं। भगवान श्रीहरि के चरणों में सबकुछ समर्पित करना ही पादसेवन भक्ति है।
  • नवधा भक्ति में अर्चन भक्ति का भी वर्णन है। अर्चन भक्ति के माध्यम से भक्त तन और मन समर्पित कर भगवान श्रीहरि की भक्ति करते हैं। राजा पृथु अर्चन भक्ति करते थे। इसके बाद वंदन भक्ति है। इस भक्ति के प्रमुख अक्रूर महाराज हैं। अक्रूर महाराज ने वंदन भक्ति के जरिए प्रभु की उपासना की थी। धर्म शास्त्रों में निहित है कि अक्रूर महाराज और भगवान कृष्ण के मध्य पारवारिक संबंध थे। रिश्ते में अक्रूर महाराज, जगत के पालनहार भगवान कृष्ण के काका लगते थे।
  • त्रेता युग में भगवान श्रीराम की सेवा हनुमान जी ने दास रूप में की थी। दास्य भक्ति के प्रमुख उपासक हनुमान जी हैं, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से राम जी की सेवा और भक्ति की। इसके लिए हनुमान जी को भगवान श्रीराम का परम भक्त माना जाता है। इसके बाद सख्य भक्ति है। द्वापर युग में अर्जुन ने सखा बनकर भगवान कृष्ण की भक्ति की। इसके लिए सख्य भक्ति के प्रमुख उपासक अर्जुन थे। नवधा भक्ति की अंतिम भक्ति आत्मनिवेदन है। इसके प्रमुख उपासक राजा बलि हैं। राजा बलि ने आत्मनिवेदन के जरिए भगवान नारायण की भक्ति की।
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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।