क्या है सम्मोहन, कैसे आपकी जिंदगी में ला सकता है सकारात्मक बदलाव
अक्सर लोग सम्मोहन और काला जादू के फर्क को मटियामेट कर देते हैं। इसके लापरवाही के बावजूद दोनों में फर्क है। यह फर्क लक्ष्यों और भावनाओं को लेकर है आइए जानें, सम्मोहन के बारे में विस्तृत जानकारी -
अक्सर लोग सम्मोहन और काला जादू के फर्क को मटियामेट कर देते हैं। इसके लापरवाही के बावजूद दोनों में फर्क है। यह फर्क लक्ष्यों और भावनाओं को लेकर है आइए जानें, सम्मोहन के बारे में विस्तृत जानकारी -
क्या है सम्मोहन?
चेतन अवस्था के महत्तवपूर्ण कारकों को नजरअंदाज कर सम्मोहन शांत चित्त की अवस्था में एकाग्रता का विस्तार है। जब वह शक्ति है जिसके कारण हम अपने किसी विचार में पूरी तरह डूब जाते हैं। उदाहरण के लिये टेलीविजन चैनल पर अपना पसंदीदा कार्यक्रम देखते वक्त कई बार हम उनमें इतने तल्लीन हो जाते हैं कि हमें बाहरी दुनिया की सुध ही नहीं रहती। ध्यान देने पर यही बात पसंदीदा लेखक की पुस्तक पढ़ते वक्त सम्मोहन वही शक्ति है जो हमें उस कार्यक्रम को दखने के दौरान बाहरी दुनिया से बेसुध-सी कर देती है। सभी इंसानों में यह सम्मोहन की ही शक्ति है जिसके कारण वह अंर्तमन की बात सुन पाता है।
आवश्यक तत्व
सम्मोहन की क्रिया के पालन में दो चीजें अत्यधिक जरूरी है। पहली, सम्मोहन के लिये मज़बूत संकल्प शक्ति की जरूरत होती है। दूसरी महत्वपूर्ण बातों में शामिल है जागृत और सुप्तावस्था। जागृत अवस्था में किसी को सम्मोहित नहीं किया जा सकता। किंत, सुप्तावस्था (मन की सुप्तता) में सम्मोहन का असर तेजी से होता है।
साधारण प्रचलित धारणा
सम्मोहन के विषय में आम प्रचलित धारणा है कि यह वशीकरण है जिसमें विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये किसी को अपने वश में कर लिया जाता है। यह धारणा सही नहीं है. सम्मोहन को काला जादू समझने की धारणा भी तर्कों से कोसों दूर है।
क्या सम्मोहन का आधार वैज्ञानिक है?
हजारों वर्षों से प्रचलित सम्मोहन की जड़ें चिकित्सा पद्धतियों में पायी गयी है। सम्मोहित व्यक्ति सुप्तावस्था में नहीं होता बल्कि उनकी इंद्रियाँ सामान्य अवस्था से ज्यादा जागृत होती है। उन्हें अपने आस-पास चल रही गतिविधियों का अधिक एहसास होता है। चिकित्सीय रूप में उपचार के लिये सम्मोहन विद्या के तकनीकों के व्यवहारिक इस्तेमाल को हिप्नोथेरेपी कहते हैं। इस लिहाज से सम्मोहन का आधार तार्किक है।
क्या हैं सम्मोहन के फायदे?
सम्मोहन की अवस्था में चिंता, डर और विचलन इंसानों से दूरी बना लेती है। इसके अभ्यास से इंद्रियाँ अत्यधिक जागृत हो जाती है औऱ मन एकाग्रता के उच्चतम स्तर तक पहुँच जाता है। इस अवस्था में हमारी इंद्रियाँ 200 से 300 प्रतिशत अधिक जागरूक हो जाती है।
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