Aksha Hridaya Vidya: क्या है अक्षहृदय मंत्र? जिस विद्या को पाकर राजा नल को मिला था खोया हुआ राजपाट
सनातन शास्त्रों में निहित है कि अक्षहृदय मंत्र के माध्यम से राजा नल ने अपना खोया हुआ राजपाट वापस पाया था। इस विद्या के माध्यम से ऋतुपर्णा वृक्ष में लगे फल को गिन लेते थे। अक्षहृदय विद्या(Akshahṛdaya Vidya) पाकर राजा नल पुनः शक्तिशाली बन सका था। राजा नल बेहद प्रतापी और दयालु थे। अपने शासन काल में राजा नल ने प्रजा की बहुत सहायता की।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। राजा नल द्वापर युग के समकालीन थे। इनके पिता का नाम वीरसेन था, जो निषाद राज्य के राजा थे। राजा नल बचपन से ही गुणवान, धर्मवान, कर्मवान और अस्त्र-शस्त्र चलाने में बेहद निपुण थे। राजा वीरसेन (Ancient Indian wisdom) की भांति नल भी साहसी एवं पराक्रमी थे। उनके पराक्रम से हर कोई वाकिफ था। समय के साथ राजकुमार बड़े हुए। इसी दौरान नल की मुलाकात दमयंती से हुई। राजकुमार नल और दमयंती एक दूसरे को चाहने लगे। विदर्भ नरेश राजा भीम की पुत्री दमयंती थीं, जो बेहद खूबसूरत थीं।
तत्कालीन समय में राजा भीम ने दमयंती के विवाह हेतु स्वयंवर किया था। इस स्वयंवर में स्वर्ग नरेश समेत कई अन्य देवता शामिल हुए थे। हालांकि, सभी राजकुमार नल के स्वरूप में थे। इसके बावजूद दमयंती अपने पति को पहचानने में सफल हुई थी। उस समय नल का विवाह राजकुमारी दमयंती से हुई थी। हालांकि, जब यह जानकारी कलि को मालूम हुई।
उस समय कलि ने दोनों को सुख और चैन से रहने का वचन स्वर्ग नरेश इंद्र को दिया। हालांकि, इंद्र देव ने केवल जानकारी के उद्देश्य से कलि को यह बात बताई थी। कालांतर में राजा नल में प्रवेश कर कलि ने दोनों को अलग कर दिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि किस विद्या के माध्यम से दोनों फिर एक हुए थे और राजा नल को खोया हुआ राजपाट मिला? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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अक्षहृदय मंत्र
पौराणिक ग्रंथों में निहित है कि विवाह के बाद राजा नल एवं दमयंती सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उस समय कलि ने राजा नल की कठिन परीक्षा ली। राजा नल को जुआ खेलने का शौक था। यह जान एक दिन राजा नल (Vedic knowledge) के भाई पुष्कर ने जुआ खेलने का निमंत्रण दिया। राजा नल ने भाई के निमंत्रण को स्वीकार किया। उस समय कलि की कलाबाजी के चलते राजा नल अपना राजपाट हार बैठे। इसके बाद उन्हें देश निकाला हो गया। अपनी पत्नी के साथ राजा नल वन की ओर प्रस्थान कर गये।
इस दौरान राजा नल को ढेर सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अपनी किस्मत पर तरस खाते हुए राजा नल ने रानी दमयंती को एक रात वन में अकेला छोड़ दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान कर गये। अकेली दमयंती को वन में भी काफी संघर्ष करना पड़ा। इसके बाद उन्हें पास के राज घराने में शरण मिली। वहीं, राजा नल को कर्कोटक सांप डस लेता है। इससे राजा नल कुरूप हो जाते हैं। हालांकि, विदर्भ भेजने से पूर्व राजा नल को दो चमत्कारी वस्त्र और घोड़े को हवा के वेग में हांकने का मंत्र देते हैं।
इसके बाद राजा नल को निकटतम राजा के पास बाहुक की नौकरी मिलती है। इसी समय दमयंती का स्वयंवर उनके माता-पिता दोबारा रखते हैं। राजा ऋतुपर्ण को भी यह जानकारी मिलती है। उस समय बाहुक को लेकर ऋतुपर्णा (Akshahrdaya Vidya) स्वयंवर के लिए जाते हैं। मार्ग में ऋतुपर्णा ने राजा नल को अक्ष हृदय मंत्र की शिक्षा दी। इस मंत्र के माध्यम से राजा नल ने पुष्कर को हराया। इससे राजा नल को खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया।
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