दिखावे में बढ़ जाएगा खर्च, जानें शुक्र के स्वाति नक्षत्र में आने का असर
8 नवंबर 2017 से 17 नवंबर 2017 तक शुक्र स्वाति नक्षत्र में रहेगा। आइये इस अवधि में क्या रहेगा खास।
क्या है स्वाति नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष की माने तो 27 नक्षत्रों में से स्वाति को 15वां नक्षत्र माना जाता है। स्वाति का शाब्दिक अर्थ है स्वत: आचरण करने वाला या स्वतंत्र। शास्त्रों में स्वाति शब्द को स्वतंत्रता, कोमलता तथा तलवार के साथ जोड़ा जाता है। हवा में झूलते छोटे पौधे को स्वाति नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। यह प्रतीक चिह्न भी स्वतंत्रता तथा आत्म-निर्भरता को दिखाता है। अपने प्रतीक के चलते भी इस नक्षत्र का संबंध स्वतंत्रता, कोमलता, आत्म-निर्भरता और संघर्ष करने की क्षमता के साथ जुड़ जाता है। वायु के देवता पवन देव को स्वाति नक्षत्र का अधिपति माना जाता है। इसी प्रकार देवी सरस्वती को भी इसकी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं जिसके कारण देवी सरस्वती का भी इस नक्षत्र पर प्रभाव रहता है। देवी सरस्वती को विद्या, ज्ञान, संगीत तथा वाणी की देवी माना जाता है। इस तरह वायु और देवी सरस्वती की विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में नजर आती हैं।
शुक्र के स्वाति में प्रवेश के प्रभाव
इस बार 8 नवंबर से शुक्र स्वाति नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है, इसका स्वामी राहु है। इस अवधि में खर्च की अधिकता रहेगी। शास्त्रों के अनुसार स्वाति नक्षत्र के सभी चार चरण तुला राशि में स्थित होते हैं जिसके कारण इस नक्षत्र पर तुला राशि तथा इस राशि के स्वामी ग्रह शुक्र का भी प्रभाव पड़ता है। नवग्रहों में से शुक्र को सुंदरता, सामाजिकता, भौतिकवाद, कूटनीति तथा आसक्ति आदि के साथ जोड़ा जाता है तथा शुक्र की ये विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में दिखाई देती हैं। इसी के चलते इस नक्षत्र के जातकों में दिखावा करने की आदत भी होती है। क्योंकि शुक्र और राहु दोनों ही ग्रह चरम भौतिकवाद से जुड़े हैं जिनमें दिखावा करने की प्रवृति चरम भौतिकवादी होने का संकेत ही देती है। स्वाति नक्षत्र में स्थित होने पर राहु तथा शुक्र काफी बलशाली हो जाते हैं क्योंकि दोनों का स्वभाव स्वाति नक्षत्र के स्वभाव से मेल खाता है।
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