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    Vishwakarma Puja 2023: कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए की जाती है विश्वकर्मा जी की पूजा, पढ़िए पौराणिक कथा

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Fri, 15 Sep 2023 04:24 PM (IST)

    Vishwakarma Puja 2023 सनातन धर्म में विश्वकर्मा जयंती का विशेष महत्व है। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का वास्तुकार भी कहा जाता है। इसके साथ ही उन्हें सृष्टि के प्रथम शिल्पकार के रूप में जाना जाता है। कन्या संक्रांति को विश्वकर्मा जयंती को विश्वकर्मा जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्वकर्मा जयंती के दिन लोग अपने बेहतर भविष्य के लिए विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं।

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    Vishwakarma Puja 2023 विश्वकर्मा पूजा पर पढ़िए पौराणिक कथा।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Vishwakarma Jayanti 2023 Date: विश्‍वकर्मा जयंती हर वर्ष कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष 17 सितंबर, रविवार के दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी। भगवान विश्‍वकर्मा, ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। इस दिन उनकी उपासना करने से साधक को व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर पढ़िए पौराणिक कथा।

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    विश्वकर्मा जयंती का महत्व (Vishwakarma Jayanti Importance)

    भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के अस्त्रों से लेकर उनके सिंहासन और महलों का निर्माण किया है। विश्वकर्मा ने सोने की लंका से लेकर श्री कृष्ण की द्वारिका और पांडवों के इंद्रप्रस्थ का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था। भगवान विश्वकर्मा ने ही महर्षि दधीचि की हड्डियों से इंद्र के लिए वज्र बनाया था।

    इसके साथ ही महादेव के त्रिशूल, श्री हरि के सुदर्शन चक्र और हनुमान जी की गदा जैसे कई अस्त्र-शस्त्र भी बनाएं। पुस्तक विमान के निर्माण का श्रेय भी विश्वकर्मा जी को जाता है। विश्वकर्मा पूजा के दिन पर कामकाजी लोग अपने बेहतर भविष्य और अपने कार्यक्षेत्र में सफलता पाने के लिए विश्वकर्मा जी की पूजा करते हैं। साथ ही इस दिन मशीनों, औजार और वाहन आदि की भी पूजा की जाती है।

    यह भी पढ़ें - Vishwakarma Jayanti 2023: विश्वकर्मा जयंती पर इस विधि से करें पूजा, कार्यक्षेत्र में मिलेगी अपार सफलता

    विश्वकर्मा पौराणिक कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में काशी में एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने काम में बड़ा ही निपुण था, लेकिन इसके बाद भी उसका जीवन अभावों से भरा हुआ था। उस रथकर के कोई पुत्र भी नहीं था। पुत्र की प्राप्ति के लिए वह और उसकी पत्नी दोनों साधु-संतों के पास जाया करते थे, लेकिन इसके बाद भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

    एक दिन उनके पड़ोसी ने उन्हें भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाने को कहा। उन्होंने ऐसा ही किया और दोनों ने अमावस्या तिथि पर व्रत रखकर भगवान विश्वकर्मा जी का महात्म्य सुना। इस व्रत के प्रताप से उन्हें पुत्र और धन दोनों की प्राप्ति हुई और वह दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'