सदाचार: सत्य, अहिंसा, ईश्वर विश्वास, मैत्री भाव, महापुरुषों का अनुसरण करना सदाचार में आता है
हमें ऐसे मूल्य आत्मसात करने ही चाहिए। राम कृष्ण और गांधी के चरित्र को आदर्श मानकर न्यायप्रिय आचरण करना चाहिए। राष्ट्र का सच्चा निर्माण और सच्ची प्रगति तभी संभव है जब प्रत्येक भारतवासी सदाचारी बनने का संकल्प ले।

सदाचार का अर्थ है सज्जन का आचरण अथवा शुभ आचरण। सत्य, अहिंसा, ईश्वर विश्वास, मैत्री भाव, महापुरुषों का अनुसरण करना आदि बातें सदाचार में गिनी जाती हैं। सदाचार को धारण करने वाला व्यक्ति सदाचारी कहलाता है। इसके विपरीत आचरण करने वाले व्यक्ति को दुराचारी कहते हैं। सदाचारी व्यक्ति समाज में पूजित होता है। सच्चरित्रता सदाचार का सर्वोत्तम साधन है। एक कहावत के अनुसार धन नष्ट हो जाए तो मनुष्य की विशेष हानि नहीं होती है, स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर कुछ हानि होती है, किंतु चरित्र का पतन होने पर मनुष्य का सर्वस्व नष्ट हो जाता है। मनुष्य में जो कुछ भी मनुष्यत्व है, उसका प्रतिबिंब उसका चरित्र है। जो व्यक्ति सदाचारी नहीं, उसका पतन सुनिश्चित है। रावण के पास धन, वैभव और विद्या सब कुछ था, किंतु अनाचार के कारण उसका सब कुछ नष्ट हो गया। महाभारत की एक कथा के अनुसार एक राजा का शील नष्ट हुआ तो उसका धर्म नष्ट हो गया।
सदाचार मनुष्य की काम, क्रोध, मोह आदि बुराइयों से रक्षा करता है। अहिंसा की भावना से मन की क्रूरता समाप्त होती है तथा उसमें करुणा, सहानुभूति एवं दया की भावना जागृत होती है। क्षमा, सहनशीलता आदि गुणों से मनुष्य का नैतिक उत्थान होता है तथा मनुष्यों से लेकर पशु-पक्षी तक के प्रति उदारता की भावना पैदा होती है। इस प्रकार सदाचार का गुण धारण करने से मनुष्य का चरित्र उज्ज्वल होता है और उसमें कर्तव्यनिष्ठा उत्पन्न होती है। सदाचार के बिना मनुष्य कभी भी अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। सत्य भाषण, उदारता, विशिष्टता, विनम्रता और सहानुभूति आदि गुण जिस व्यक्ति में होते हैं, वही सदाचारी कहलाता है। हमें ऐसे मूल्य आत्मसात करने ही चाहिए। राम, कृष्ण और गांधी के चरित्र को आदर्श मानकर न्यायप्रिय आचरण करना चाहिए। राष्ट्र का सच्चा निर्माण, और सच्ची प्रगति तभी संभव है, जब प्रत्येक भारतवासी सदाचारी बनने का संकल्प ले।
- सूर्यदीप कुशवाहा
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