Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश की पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

    ज्योतिषियों की मानें तो आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर देवगुरु बृहस्पति अपनी चाल बदलेंगे। बृहस्पति देव की चाल बदलने से कई राशि के जातकों को जीवन में बदलाव देखने को मिलेगा।

    By Pravin Kumar Edited By: Pravin Kumar Updated: Wed, 25 Jun 2025 01:32 PM (IST)
    Hero Image

    Vinayak Chaturthi 2025: विनायक चतुर्थी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ माह की विनायक चतुर्थी शनिवार 28 जून को है। यह पर्व हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही मनोवांछित फल पाने के लिए विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    23_04_2019-lordganesha23apr19p_19159369(15)

    भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही कारोबार में मनमुताबिक सफलता मिलती है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही दान और पुण्य भी किया जाता है। अगर आप भी जीवन में व्याप्त संकटों से निजात पाना चाहते हैं, तो विनायक चतुर्थी के दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

    यह भी पढ़ें: भगवान गणेश की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, दौड़ने लगेगा रुका हुआ कारोबार

    मयूरेश स्तोत्र

    पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
    मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं ह्रदि स्थितम् ।
    गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
    सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।
    नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।
    सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
    सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
    भक्तानंदकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।
    समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
    सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
    अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।

    मयूरेश उवाच

    इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रणाशनम् ।
    सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ।।
    कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।
    आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ।।

    ॥ ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्रम् ॥

    ॐ स्मरामि देवदेवेशंवक्रतुण्डं महाबलम्।
    षडक्षरं कृपासिन्धुंनमामि ऋणमुक्तये॥

    महागणपतिं वन्देमहासेतुं महाबलम्।
    एकमेवाद्वितीयं तुनमामि ऋणमुक्तये॥

    एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकंब्रह्म सनातनम्।
    महाविघ्नहरं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥

    शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णंशुक्लगन्धानुलेपनम्।
    सर्वशुक्लमयं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥

    रक्ताम्बरं रक्तवर्णंरक्तगन्धानुलेपनम्।
    रक्तपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णंकृष्णगन्धानुलेपनम्।
    कृष्णयज्ञोपवीतं चनमामि ऋणमुक्तये॥

    पीताम्बरं पीतवर्णपीतगन्धानुलेपनम्।
    पीतपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    सर्वात्मकं सर्ववर्णंसर्वगन्धानुलेपनम्।
    सर्वपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    एतद् ऋणहरं स्तोत्रंत्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
    षण्मासाभ्यन्तरे तस्यऋणच्छेदो न संशयः॥
    सहस्रदशकं कृत्वाऋणमुक्तो धनी भवेत्॥

    संकटनाशन गणेश स्तोत्र

    प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
    भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥
    प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
    तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥
    लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
    सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥
    नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
    एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥
    द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
    न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥
    विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
    पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥
    जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
    संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥
    अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
    तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥


    ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

    ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।
    ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥
    भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।
    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
    इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
    एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।
    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥


    यह भी पढ़ें: बुधवार को इस सरल विधि से करें भगवान गणेश की पूजा, घर में होगा खुशियों का आगमन

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्नमाध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।