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    शुकदेव जी ने ही अपने पिता वेदव्यास से महाभारत सुना और देवताओं को सुनाया था

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Wed, 28 Oct 2015 11:32 AM (IST)

    महाभारत काल यानी द्वापरयुग का समय, इस समय कई ऋषि-मुनि जीवित थे। इन्हीं मेें से एक थे शुकदेव जी। शुकदेव जी महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे, और उनकी मां का नाम वाटिका था। उनका विवाह पीवरी से हुआ था। वह वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान के

    महाभारत काल यानी द्वापरयुग का समय, इस समय कई ऋषि-मुनि जीवित थे। इन्हीं मेें से एक थे शुकदेव जी। शुकदेव जी महर्षि वेदव्यास के पुत्र थे, और उनकी मां का नाम वाटिका था। उनका विवाह पीवरी से हुआ था। वह वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान के ज्ञानी थे।

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    शुकदेव जी ने ही अपने पिता वेदव्यास जी से महाभारत सुना और देवताओं को सुनाया था। शुकदेव जी ने ही राजा परीक्षत को श्रीमद्भागवद् पुराण सुनाया था। शुकदेव का जन्म विचित्र तरीके से हुआ, कहते हैं बारह वर्ष तक मां के गर्भ में शुकदेव जी रहे। एक बार शुकदेव जी पर देवलोक की अप्सरा रंभा आकर्षित हो गई और उनसे प्रणय निवेदन किया। शुकदेव ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।

    जब वह बहुत कोशिश कर चुकी, तो शुकदेव ने पूछा, आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं। मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक होने लगता है। मैं उस रस को छोड़कर जीवन को निरर्थक बनाना नहीं चाहता। कुछ और रस हो, तो भी मुझे क्या? यदि भगवत प्रेरणा से पुनः जन्म लेना पड़ा, तो मैं नौ माह आप जैसी ही माता के गर्भ में रहकर इसका सुख लूंगा।

    महर्षि वेदव्यास की हार्दिक इच्छा थी कि शुकदेव 'श्रीमद्भागवत' जैसी परमहंस संहिता का अध्ययन करें, किन्तु ये मिलते ही नहीं थे। व्यास ने 'श्रीमद्भागवत' की श्रीकृष्णलीला का एक श्लोक बनाकर उसका आधा भाग अपने शिष्यों को दिया। वे उसे गाते हुए जंगल में समिधा लाने के लिये जाया करते थे।

    एक दिन शुकदेव जी ने भी उस श्लोक को सुन लिया। श्रीकृष्णलीला के अद्भुत आकर्षण से बंधकर शुकदेव अपने पिता श्रीव्यास के पास लौट आये। फिर उन्होंने 'श्रीमद्भागवत महापुराण' के अठारह हज़ार श्लोकों का विधिवत अध्ययन किया।

    शुकदेव जी ने परमहंस संहिता का सप्ताह-पाठ महाराज परीक्षित को सुनाया, जिसके दिव्य प्रभाव से परीक्षित ने मृत्यु को भी जीत लिया और भगवान के मंगलमय धाम के सच्चे अधिकारी बने।

    श्रीव्यास के आदेश पर शुकदेव महाराज परम तत्त्वज्ञानी महाराज जनक के पास गये और उनकी कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उनसे ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया। आज भी महात्मा शुकदेव अमर हैं। शुकदेव मुनि कम उम्र ब्रह्मलीन हो गये थे।