नई दिल्ली, Vastu Tips: वास्तुशास्र की उत्पत्ति संस्कृत की वस् धातु से हुई है। इसका संबंध घर व भवन निर्माण से होता है। वास्तुशास्र में दिशाओं को मद्देनज़र रखते हुए सभी दिशाओं के देवता, ग्रह और पंचतत्वों (पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश) के अनुसार अगर भवन निर्माण किया जाता है, तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हमेशा बना रहता है। परिवार में खुशी रहती है तथा वहां रहने वालों को शारीरिक व मानसिक शांति भी मिलती है।
विभिन्न वास्तु ग्रंथों में तीन प्रकार की ऊर्जा बताई गयी है।
1. गुरुत्वाकर्षण शक्ति
2. चुम्कीय शक्ति
3. सौर उर्जा
आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकल्ट साइंस की वास्तु विशेषज्ञ नीलम वर्मा जी के मुताबिक वास्तुशास्र, ज्योतिष शास्र का एक अभिन्न अंग है। इन दोनों का एक समान लक्ष्य है- “ मानव जाति को सुविधा व सुरक्षा देना।” दोनों का विचार क्षेत्र भी एक समान है- “मानव जीवन का घटनाचक्र”। अत: ये दोनों एक दूसरे के पूरक है।
वास्तु द्वारा घर में सकारात्मकता बढ़ाने वाले कुछ आवश्यक बिंदु:-
मुख्य द्वार :
*मुख्य द्वार घर में समृद्धि, खुशहाली व सकारात्मक ऊर्जा का मुख्य स्रोत होता है, अतः मुख्य द्वार का ख्याल रखना चाहिए।
* मुख्य द्वार हमेशा साफ-सुथरा हो।
* वहां रौशनी का उचित प्रबंध हो।
* द्वार को तोरण, कलश, स्वस्तिक व सिंह के चित्रों से सुशोभित करना चाहिए।
* मुख्य द्वार पर दहलीज का निर्माण अनिवार्य है ।
* मुख्य द्वार के ठीक सामने कूड़ेदान नहीं रखना चाहिए ।
* अगर मुख्य द्वार दो पल्लों का हो तो वास्तुशास्र के अनुसार अति शुभ होता है।
लंबाई व वजन:-
वास्तु विशेषज्ञ नीलम वर्मा जी (आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकल्ट साइंस) ने आगे बताया की *भवन की पूर्व तथा उत्तर दिशा हमेशा निचाई की तरफ होनी चाहिए, इससे सुख व समृधि बढ़ती है, मंगलकारक होती है ।
* वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा को हमेशा ऊंचा रखें, यह धनदायक व स्वास्थ्यप्रद बताई गई है।
* घर का ब्रह्म स्थान यानी घर के ठीक बीच वाला भाग खुला होना चाहिए, उस पर किसी भी प्रकार का निर्माण जैसे दीवार. स्तम्भ, या कील आदि नहीं होने चाहिए। यह स्थान अगर ऊंचा होगा तो ऐश्वर्य देने वाला सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होगा। यह अति शुभ ऊर्जा वाला स्थान माना जाता है ।
* दक्षिण दिशा में सिर्फ पहाड़ की फोटो लगाना भी शुभदायी होता है ।
वेध:-
* वेध अर्थात दोष जैसे भवन के मुख्य द्वार के सामने यदि कोई पेड, स्तंभ, कुआं, सड़क, कीचड़ आदि हो तो वह द्वार के लिए वेध अर्थात दोष होता है। अतः ये सभी चीजें द्वार के ठीक सामने नहीं होनी चाहिए।
खुले स्थान:-
आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकल्ट साइंस की वास्तु विशेषज्ञ नीलम वर्मा जी के अनुसार सकारात्मक ऊर्जा के लिए घर की पूर्व व उत्तर दिशा खुली होनी चाहिए और वहां खिड़कियां ज्यादा होनी चाहिए जिससे साफ हवा और रोशनी घर में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह करती रहे और तो और परिवार के सदस्यों को विटामिन-डी भरपूर मात्रा में मिलता रहे. इससे भी सकारात्मकता का प्रवाह होता है ।
ढलान:
* घर की पूर्व दिशा, उत्तर तथा उत्तर–दिशा में ढलान होना भी सकारात्मक उर्जा को बढावा देता है।
पूजा स्थान:-
वास्तु विशेषज्ञ नीलम वर्मा जी (आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकल्ट साइंस) के अनुसार भवन की उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में पूजा स्थान बनाना श्रेयस्कर होता है। घर के बेडरूम या सीढ़ियों के नीचे पूजा स्थान बनाना नकारात्मक उर्जा को बढ़ावा देता है।
कुछ अन्य ध्यान देने योग्य मुख्य बिंदु:-
* यदि घर में कोई भी बंद सामान जैसे घड़ी या इलेक्ट्रिक सामान हो, जो काफी समय से ।
* यदि घर के बेडरूम में शीशा हो तो उसे हमेशा ढककर ही सोये ।
* भवन के दरवाज़े यदि अशोक, शीशम व सांगवान के हों तो वास्तुशास्र कहता है कि ये वहां रहने वालों के लिए अति शुभ होते है।
* यदि भवन में बेसमेंट का निर्माण करना हो तो पूर्व या उत्तर दिशा में ही करना चाहिए।
* सैप्टिक टैंक उत्तर या पश्चिम दिशा की ओर या विशेष परिस्थितियों में ही पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा में भी बनवाया जा सकता है।
निष्कर्ष:-
वास्तु, सम्पूर्ण विज्ञान कुछ नहीं है । इसे आधुनिक समय का आर्किटेक्चर भी कहा जा सकता है। अपने दैनिक जीवन में हम जो भी चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, उन्हें किस प्रकार रखा जाए यही वास्तु है या दूसरे शब्दों में कहें तो यह पंच –तत्वों (फाइव एलेमेंट्स) का संतुलन है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह का परिचायक है, जिसे हम स्वस्थ व सुखी रह सकते है।
नीलम वर्मा, वास्तु विशेषज्ञ (आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकल्ट साइंस) द्वारा लिखित
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